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नौली में निन्यानवे रुपये हैं, एक रुपया मात्र खाली है।
जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग
'जो व्यक्ति अपने पर अनुशासन नहीं कर सकता, अपनी प्रकृति का स्वामी नहीं है, अपने आवेगों और आवेशों पर नियन्त्रण नहीं रख सकता पर पढ़ा लिखा है, तो उसकी नौली में केवल एक रुपया है, वह निन्यानवें रुपयों से खाली है'। कितना सुन्दर रूपक है !
जिस व्यक्ति ने अपने आपको नहीं संवारा, नहीं सजाया, उसकी थैली खाली है, वह स्वयं रिक्त है, फिर चाहे वह अनेक विद्याओं का ज्ञाता हो जाए, निष्णात हो जाए। ऐसा व्यक्ति परिवार, समाज और संसार के लिए कांटा ही बना रहेगा। आज के बड़े-बड़े राजनेता और वैज्ञानिक संसार के लिए कांटे बने हुए हैं, एक भयंकर खतरा पैदा किए हुए हैं, इसलिए कि वे सब दुनिया को नष्ट करने वाली सामग्री का अंबार लगाने में जुट हुए हैं। ऐसा पागलपन अतीत में कभी नहीं हुआ होगा, आज जीवन-मृत्यु में कोई दूरी नहीं रह गई है। किस क्षण क्या हो जाए, कोई निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता। विनाश की सामग्री जुटाने वाले और जिसको लक्ष्य कर सामग्री जुटाई जा रही है, वे दोनों विनाश के कगार पर खड़े हैं। कोई सुरक्षित नहीं है। क्यों आता है ऐसा पागलपन ? यह पागलपन आता है आत्मानुशासन के अभाव में।
समाधान का बिन्दु
आत्मानुशासन का मूल्य सर्वोपरि है। आत्मानुशासन ध्यान के अभ्यास के बिना नहीं आता । ध्यान और साधना की सारी पद्धतियां तथा आध्यात्मिक विकास के सारे उपक्रम आत्मानुशासन के लिए हैं। आत्मानुशासन के आने पर अन्यान्य विद्याएं भी पूर्णता को प्राप्त कर लेती हैं। फिर उनमें कोई अपूर्णता नहीं रहती ।
प्रत्येक व्यक्ति यह अनुभव करे कि शांतिपूर्ण जीवन या सुखी जीवन की प्रक्रिया तब तक पूरी नहीं होती जब तक कि आत्मानुशासन का पाठ पूरा नहीं पढ़ लिया जाता । प्रत्येक व्यक्ति इस सचाई को समझे- जो विद्याएं हमने विद्यापीठों में पाई हैं, वे सारी वस्तु जगत् की विद्याएं हैं। वस्तु जगत् की शिक्षा सदा अधूरी होती हैं। उसमें पूर्णता तब आएगी जब आदमी चेतन जगत् की विद्या को सीखेगा। यदि यह बात पूर्णरूप से समझ में आ जाए तो जीवन विज्ञान की अनिवार्यता समझ में आ जाए।
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