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________________ जीवन विज्ञान : आधार और प्रक्रिया जागरूकता चौथा तत्त्व है- जागरूकता । हमारी अजागरूकता के कारण अनेक कठिनाइयां पैदा होती हैं। यदि हम जागरूक रहें तो अनेक समस्याओं से बच जाएं। जागरूकता का अभ्यास चलते-फिरते, सोते-बैठते हर समय किया जा सकता है। जो व्यक्ति जागने के समय में जागने का अभ्यास कर लेता है, उसकी जागरूकता नींद में भी बनी रहती है। योगशास्त्र में, अध्यात्म शास्त्र में दो प्रकार की नींद बतलाई गई है- सुप्त निद्रा और जाग्रत निद्रा । जाग्रत निद्रा में आदमी नींद तो लेता है फिर भी बराबर यह भान बना रहता है- मैं नींद ले रहा हूं, मैं जाग रहा हूं। मानसिक चिकित्सा का सबसे बड़ा सूत्र है - स्मृति बोध या जागरूकता, सतत जागरूकता। इस पद्धति के माध्यम से जटिल मानसिक रोगों की चिकित्सा की जा सकती है। जीवन विज्ञान की अभ्यास-प्रक्रिया के ये चार तत्त्व - प्रेक्षा, अनुप्रेक्षा, कायोत्सर्ग और जागरूकता - बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। जो व्यक्ति इन चारों को साध लेता है, इनमें निष्णात हो जाता है, वह अपने जीवन का आनन्द लेने में सक्षम हो जाता है। चेतना और शक्ति का संचय इनके माध्यम से होता है। इनका प्रयोग करने वाला व्यक्ति चेतना - संपन्न (विशिष्ट चेतना - संपन्न) और शक्ति-संपन्न बन जाता है। २१ अभ्यास १. शरीर, श्वास, वाणी और मन-इन चारों को प्रशिक्षित करने की जीवन-विज्ञान में कौनसी प्रक्रिया है ? २. मन चंचल क्यों होता है? उसकी चंचलता को मिटाने का सरल उपाय बताइए? ३. अनुप्रेक्षा का प्रयोग क्यों किया जाता है? ४. प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में शरीर दर्शन का अर्थ समझाइए ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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