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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग प्रयोग प्राणवायु का संपूरण करते हैं। ऑक्सीजन जाती है श्वास के माध्यम से। कार्बन-डाइ-आक्साइड निकलती है श्वास के माध्यम से। श्वास भीतर जाती है जो प्राण तत्त्व लेकर जाती है और बाहर आती है तो दूषित तत्त्व को लेकर आती है। यह सारा कार्य श्वास के द्वारा हो रहा है। ऑक्सीजन के बिना कोई भी कोशिका काम नहीं कर सकती। प्रत्येक कोशिका को प्राणवायु की जरूरत होती है। यह सारा ईधन उपहृत होता है श्वास के द्वारा। श्वास सारी सप्लाई कर रही है। श्वास हमारी चेतना के जागरण में भी बड़ी सहयोगी बनती है। चेतना के सूक्ष्म स्पंदनों को सक्रिय बनाने में श्वास का बड़ा योग होता है। वाणी : सामाजिकता का माध्यम
तीसरा तत्त्व है-वाणी। वाणी हमारी प्रवृत्ति का और सामाजिकता का मुख्य माध्यम है। यदि वाणी नहीं होती तो समाज नहीं होता। पशुओं का समाज नहीं है। वह इसलिए नहीं है कि उनके पास भाषा नहीं है। वाणी के अभाव में समाज नहीं बनता। संस्कृत कोश में दो शब्द व्यवहृत हैं-समज और समाज। 'पशूनां समजः, मनुष्याणां समाज:'- पशुओं का समूह 'समज' होता है
और मनुष्यों का समूह 'समाज' होता है। भेद-रेखा यही है कि पशुओं के पास वाणी नहीं है। वाणी के बिना व्यवस्थित चिंतन नहीं हो सकता और चिंतन के बिना कोई समाज नहीं बन सकता। मनुष्य को वाणी भी उपलब्ध है, चिन्तन भी उपलब्ध है इसलिए वह समाज बना पाया है। सामाजिकता का मुख्य आधार बनती है-वाणी।
मन
चौथा तत्त्व है-मन। मन स्मृति, कल्पना और चिन्तन का माध्यम बनता है। हमारी जीवन की यात्रा इन तीनों के आधार पर चलती है। स्मृति के अभाव में यात्रा दूभर हो जाती है। कल्पना के बिना विकास की कोई बात नहीं सोची जा सकती। चिंतन के बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता। इन तीनों का सशक्त माध्यम है हमारा मन। समस्या सहायक की
ये चार तत्त्व -शरीर, श्वास, वाणी और मन हमारे प्रवृत्ति तन्त्र के मजबूत पाये हैं। इन चारों के बिना हमारी प्रवृत्तियों का सम्यक् संचालन नहीं हो सकता पर ये बाधक भी बन जाते हैं। मन बहुत बाधक बनता है। एक काम
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