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________________ - २१८ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रायोगिक आठवीं क्रिया पीठ के बल लेटें। हाथों को सिर की ओर फैलाकर श्वास भरें। बायीं ओर शरीर को गोलाकार घुमाएं । श्वास छोड़कर पीठ के बल साथ ले जाएं। श्वास भरकर दायीं ओर शरीर को गोलाकार बैलन की तरह घुमाएं । श्वास का रेचन कर पीठ के बल लेंटे। शरीर शिथिल छोड़ दें। क्रिया की पांच आवृत्ति करें । सम्पूर्ण शरीर की इससे मालिश हो जाती है। पेट, सीने एवं कमर की विकृतियां दूर होती हैं। लाभ-सम्पूर्ण शरीर की इससे मालिश हो जाती है। पेट, सीने एवं कमर की विकृतियां दूर होती हैं। कायोत्सर्ग की मुद्रा ___ पीठ के बल सीधे लेटें । चित्त को श्वास पर केन्द्रित करें। मंद-मंद श्वास-प्रश्वास लें। शरीर को शिथिल छोड़ दें। आंखें कोमलता से मूंद लें। दोनों पांव के बीच एक फुट का फासला रखें । हथेलियां आकाश की ओर शरीर के समानांतर फैला दें। प्रत्येक अवयव में शिथिलता का अनुभव करें। नोट : तृतीय पत्र का अवशिष्ट प्रायोगिक 'अहिंसा-अणुव्रत : सिद्धान्त और प्रयोग', जो द्वितीय पत्र के लिए स्वीकृत है, में दिया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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