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________________ अभ्यास प्रथम : प्रेक्षा-ध्यान १. पुनरावर्तन पूर्व तैयारी, ध्यान का प्रथम चरण, ध्यान का दूसरा चरण जैसे प्रथम वर्ष में प्रायोगिक पाठ्यक्रम में निर्दिष्ट है, वैसे अभ्यास करें। तीसरे चरण में दीर्घश्वास-प्रेक्षा और समवृत्ति श्वास प्रेक्षा का पुनः अभ्यास करें। इस वर्ष तीसरे चरण में शरीर-प्रेक्षा और चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा का अभ्यास करें। चतुर्थ चरण में ज्योतिकेन्द्र पर श्वेत रंग के ध्यान का पुनः अभ्यास करें। समापन-विधि का पुनः अभ्यास करें। २ ध्यान का तीसरा चरण : शरीर प्रेक्षा विधि- (शरीर-प्रेक्षा में हमें शरीर को देखना है। खुली आंखों से नहीं, चित्त से। आंखें बंद रहेंगी। चित्त को शरीर के एक-एक अवयव पर ले जाकर वहां पर होने वाले परिणमन, स्पंदन या प्रकम्पन आदि को द्रष्टाभाव से देखना है। कपड़े का स्पर्श, पसीना, खुजली, दर्द आदि जो कुछ अनुभव हो, उसे देखना है, उसका अनुभव करना है- इस बात को प्रशिक्षण में स्पष्ट कर दें तथा पहले प्रयोग के साथ बताएं।) प्रयोग- चित्त को दाएं पैर के अंगूठे पर केन्द्रित करें। पूरे भाग में चित्त की यात्रा करें। वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनों का अनुभव करें। केवल जानें और अनुभव करें। प्रियता और अप्रियता से मुक्त रहकर केवल द्रष्टाभाव से देखें। इसी तरह अंगुलियां..."पंजा...."तलवा..एडी...... "टखना ......पिण्डली......"घुटना....... साथल...... और कटिभाग। (प्रत्येक अवयव पर आधा या एक मिनट प्रेक्षा कराएं) (प्राण के प्रकम्पनों......'द्रष्टा भाव से देखें- इस वाक्य को प्रत्येक अवयव के साथ बोलना जरूरी नहीं है। बीच-बीच में एक दो-बार दोहराएं।) इसी प्रकार बायां पैर........(प्रत्येक अवयव का नाम लेकर आधा से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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