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जीवन-विज्ञान : स्वस्थ समाज-रचना का संकल्प
१९७ प्रतिशत भाग भी अहिंसा के पीछे खर्च नहीं हो रहा है। बड़े आश्चर्य की बात है। हमारी दुहाई है अहिंसा की और सारी शक्ति का नियोजन हो रहा है हिंसा के पीछे। क्या यह विरोधाभास नहीं है? हर आदमी शांति से रहना चाहता है और उसकी सारी प्रवृत्तियां अशांति को सिंचन दे रही है। क्या यह विरोधाभास नहीं है ? यह सब क्यों हो रहा है ? इसलिए कि बचपन से ही संस्कार दूसरे प्रकार के बने हुए हैं।
जब संस्कार रूढ़ हो जाते हैं, अर्जित आदतें रूढ़ बन जाती हैं तब उन्हें तोड़ना हर किसी के वश की बात नहीं होती। कुछ व्यक्ति अपवाद हो सकते हैं कि जो बड़ी अवस्था में भी आमूलचूल बदल सकते हैं, अपनी आदतों को बदल देते हैं, अपने संस्कारों में भी परिवर्तन ला देते हैं। किन्तु यह एक विशेष घटना है। जब कि संभावना यह है कि छोटी अवस्था में अभिलक्षित आदत का निर्माण किया जा सकता है, वह बहुत संभव है। इसलिए शिक्षा के साथ इसकी बहुत संगति बैठती है कि प्रारम्भ से ही बच्चों में वैसी आस्थाओं का निर्माण किया जाए, जिनकी अपेक्षा समाज रखता है और जिन्हें हम सामाजिक मूल्य के रूप में विकसित करना चाहते हैं।
अभ्यास १. महात्मागांधी ने अहिंसा के प्रयोग बड़े लोगों में किए थे, फिर
जीवन-विज्ञान में बचपन से ही अहिंसा के प्रयोग कराने की
परिकल्पना क्यों की गयी? २. हिंसा के वातावरण में अहिंसा के संस्कार को कैसे पल्लवित किया
जा सकता है?
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