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जीवन-विज्ञान : स्वस्थ समाज-रचना का संकल्प
१९५ ढाई आखर प्रेम का
प्रेम उत्पन्न करना, प्रेम का विकास करना, मैत्री का विकास करना यह अहिंसा का दूसरा तत्त्व है।
प्रेम की बहुत महिमा गाई है हमारे संतों ने । कबीर ने यहां तक लिखा
पोथा पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ॥ आज समस्या यही है कि शिक्षा के साथ संवेदनशीलता, प्रेम, मैत्री या करुणा के विकास की बात बहुत जुड़ी हुई नहीं है। कहीं-कहीं होगी पर जुड़ी हुई नहीं है और केवल शिक्षा या पढ़ाई से ही यह बात आने वाली नहीं है। प्रेम के जो केन्द्र हैं शरीर में, जब तक उनको नहीं छुआ जाता, करुणा के केन्द्रों को नहीं छुआ जाता, तब तक वे विकसित नहीं होते।
घृणा का केन्द्र भी हमारे मस्तिष्क में है और प्रेम का केन्द्र भी हमारे मस्तिष्क में है। दोनों विद्यमान है। जिसको बल मिलेगा, वह पुष्ट हो जाएगा। जिसको बल नहीं मिलेगा, वह कमजोर हो जाएगा।
दो लड़के हैं। जिस लड़के को प्यार मिलेगा, वह अच्छा बन जाएगा और जिसको तिरस्कार मिलेगा, वह सूख जाएगा। जिस पौधे को प्यार मिलेगा, वह पल्लवित हो जाएगा। जिसे प्यार नहीं मिलेगा, पानी नहीं मिलेगा, जीवन नहीं मिलेगा, वह पौधा सूख जाएगा। प्रश्न है पल्लवन का
स्मृति पर खोज करने वाले वैज्ञानिक बतलाते हैं कि हमारे स्मृति के रसायन बड़े अद्भुत है। एक रसायन को आप हजार बार बल दें वह पुष्ट हो जाएगा और वह बात २०-३० वर्ष तक बराबर आपकी स्मृति में बनी रहेगी। यदि उसको बल नहीं मिलेगा तो वह रसायन कमजोर पड़ता चला जाएगा और विस्मृति की मात्रा बढ़ती चली जाएगी।
प्रश्न है आवृत्ति का, प्रश्न है पल्लवन का और प्रश्न है उसे पोषण मिलने का। हम उन केन्द्रों को यदि पल्लवित करते हैं, उनको छूते हैं तो अवश्य ही घृणा की भावना कम होती है और प्रेम का विकास होता है।
प्रेक्षाध्यान का एक प्रयोग है- ज्योति-केन्द्र प्रेक्षा। यदि ज्योति-केन्द्र पर
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