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विधायक भाव
१६७ काल्पनिक समस्याएं
__ कल्पना जहां मानसिक विकास है वहां बहुत बड़े संकटों का कारण भी है। यदि कल्पना का संयम हो जाए तो बहुत सारी मानसिक समस्याएं सुलझ जाएं। कल्पना के द्वारा समस्याएं बहुत उलझती हैं।
काल्पनिक समस्याएं जटिल भी होती हैं। यदि वास्तविक समस्याएं हों तो सुलझाने में बहुत समय नहीं लगेगा। किन्तु हमारी समस्या ही जब काल्पनिक बन जाती है तो फिर सुलझाने का रास्ता भी जटिल हो जाता है। ..
हम यदि सचमुच अध्ययन करें तो पता चलेगा कि प्रायः समस्याएं काल्पनिक होती हैं। चाहे पारिवारिक हों, चाहे संस्थागत हों, चाहे राष्ट्रगत हों, अधिकांश कल्पनाएं यथार्थ नहीं होती और वे समस्याएं बन जाती हैं। वास्तविक समस्याएं बहुत थोड़ी होती हैं। पिता के मन में पुत्र के प्रति कल्पना ज्यादा काम करती है। अच्छा मानता है, बुरा मानता है उसके पीछे कल्पना का बहुत बड़ा हाथ होता है। चाहे भाई-भाई का संबंध या अन्य कोई भी संबंध हो । जहां दो जुड़ते हैं उनके बीच में कल्पना की एक दीवार हमेशा रहती है। वह कल्पना की दीवार टूट जाए, व्यक्ति साक्षात् हो जाए तो पता चलेगा कि समस्याएं तो बहुत कम हैं।
कल्पना का विकास होना मानसिक विकास है तो कल्पना का होना मानसिक समस्याओं का होना भी है। विकास के साथ समस्याएं पैदा होती हैं। आग के साथ धुआं भी पैदा होता है, उसके रोका नहीं जा सकता। यह अनिवार्यता है। विकास के साथ समस्याएं पैदा होती हैं। उन समस्याओं से निपटने के लिए हमारी लौकिक शिक्षा में कोई व्यवस्था नहीं है। यह शिक्षा का एकांगीपन है। यदि सर्वांगीण होती तो अध्यात्म की शिक्षा, ध्यान की शिक्षा उससे पृथक् नहीं होती। अपने जीवन को समझने के लिए, अपने मन की समस्या को समझने के लिए और अपनी मानसिक समस्या का समाधान खोजने के लिए जो चाहिए, वह हमारी शिक्षा में नहीं है। परिवर्तन का सूत्र
समस्याओं का समाधान होता है परिवर्तन के द्वारा। परिवर्तन होना चाहिए। केवल शाब्दिक परिवर्तन नहीं, जो हमारे भीतर है वह बदलना चाहिए । जो हमारे जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है उसमें परिवर्तन आना चाहिए।
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