SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६० जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग कारण यही है कि आज शिक्षा पद्धति सही नहीं है। ये सब समस्याएं कैसे मिटेंगी। समाज को बदलने का एकमात्र साधन है शिक्षा-तंत्र। वहां से विद्यार्थियों में बीज-वपन होता है। शिक्षा बदलेगी तो समाज-व्यवस्था में भी परिवर्तन आएगा। समाज-व्यवस्था को शिक्षा के दर्पण में देखा जा सकता है। समाज परिवर्तन के लिए दो बातें जरूरी हैं- संवेग पर नियन्त्रण और विचारों पर नियन्त्रण की क्षमता का विकास। विद्यार्थी समाज में आता है, सामाजिक जीवन जीता है। वह आज समाज को अच्छा नहीं बना रहा है। इसका कारण है कि उसमें नियन्त्रण की शक्ति नहीं है। यह शाश्वत सत्य है कि जब तक व्यक्ति में संवेगों, विचारों और वासनाओं पर नियन्त्रण करने की क्षमता नहीं होती, तब तक अच्छा समाज नहीं बन सकता। वह अपराधियों का समाज होगा, स्वच्छ सामज कभी नहीं होगा। महामात्य कौटिल्य ने लिखा है- शासकों और समाज को इन्द्रियजयी होना चाहिए। उसने यह बात साधना या वीतराग बनने के लिए नहीं कही किन्तु इसलिए कही कि यदि शासक इन्द्रियजयी नहीं होता है तो जनता उत्पीड़ित होती है। यदि वह इन्द्रियजयी है तो जनता सुख-सम्पन्न होती है। शासक-वर्ग की इन्द्रिय-उच्छृखलता के कारण ही अनेक समस्याएं उभरी है। जिस समाज में इन्द्रिय-संयम की बात नहीं होती, उस समाज में चोरियां, डकैतियां, बलात्कार और अपराध बढ़ते जाते हैं। शिक्षा का आधार आज की शिक्षा से बौद्धिक विकास तो पर्याप्त मात्रा में हो रहा है किन्तु चरित्र निर्माण नहीं हो रहा है। इसलिए आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन का प्रवर्तन किया, जिससे कि व्यक्ति अच्छा आदमी, अच्छा नागरिक बन सके, अच्छे समाज का निर्माण हो। उसके लिए आचार-संहिता तैयार हो गई। पर उस . आचार-संहिता का क्रियान्वयन कैसे हो, इस चिन्तन के उपक्रम से प्रेक्षाध्यान का विकास हुआ। इसका क्रियान्वयन शिक्षा-जगत् के लिए वरदान है। शिक्षा-जगत में यह बहुत ध्यान देने योग्य बात है कि शिक्षा का आधार बायोलोजिकल आस्पेक्ट होना चाहिए था। पर आज वह पूर्णत: उपेक्षित हो रहा है। बायोलोजिकल आस्पेक्ट से जब व्यक्तित्व का निर्माण होता है तब बौद्धिक विकास के साथ-साथ चरित्र का भी निर्माण होता है। दो पक्ष हैं- बौद्धिक विकास और संवेग-नियन्त्रण। बौद्धिक विकास तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy