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________________ १५८ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग प्रेम मिलता है, फिर उसके मन का भय भाग जाता है, स्कूल के साथ आत्मीय भाव जाग जाता है। इस प्रकार के व्यवहारिक प्रयोगों के द्वारा भाव - परिवर्तन किया जा सकता है। मूल्य - विकास के लिए ये दोनों पद्धतियां हैं- व्यवहार के द्वारा भावों को बदलना या भावों के द्वारा व्यवहार को बदलना । जब भाव - परिवर्तन होता है तब व्यवहार अवश्य बदलता है। जैसा भाव होता है, वैसा व्यवहार बनता है। इसके बीच में विज्ञान की एक कड़ी और जुड़ती है कि भाव द्वारा रसायन पैदा होता है। रसायन भाव पैदा करता है। प्रत्येक व्यवहार के पीछे एक रसायन पैदा होता है। क्रोध का रसायन भिन्न होता है और क्षमा का रसायन भिन्न होता है। जितने भाव हैं उतने ही रसायन हैं। भाव के द्वारा रसायन बदलता है और रसायन के द्वारा व्यवहार । व्यवहार- परिवर्तन का भी अभ्यास कराना चाहिए। मूल्यपरक शिक्षा मूल्यपरक शिक्षा के विषय में दो बातों का ध्यान देना चाहिए १. सिद्धांत और प्रयोग का समन्वय । २. भाव - परिवर्तन के लिए अनुप्रेक्षा के प्रयोग और व्यवहार परिवर्तन के लिए व्यावहारिक प्रयोग | ये समन्वित प्रयोग चलने चाहिए। प्रयोग के बिना आदतें बदलती नहीं । विद्यार्थियों को रचनात्मक विकल्प देने से उनमें परिवर्तन घटित होने लगता है। जब बच्चा मिट्टी खाता है, माताएं उसको वशलोचन देती हैं। बच्चा वंशलोचन खाने लगता है और उसकी मिट्टी खाने की आदत छूट जाती है। रचनात्मक विकल्पों के द्वारा आदतें बदलती हैं। व्यवहार परिवर्तन के प्रयोग एक बच्चे में चोरी की आदत बन गई। वह जब कभी कोई भी चीज चुरा लेता है । उसको कैसे बदलें ? पहली बात है कि उसको चोरी के परिणामों का बोध कराया जाए। दूसरी बात है कि उसको प्रयोग सिखाए जाएं। वह चोरी का निर्णय लेता है चेतन माइन्ड से। दर्शन केन्द्र पर ध्यान कराने से उसकी अन्तर प्रज्ञा जागृत होगी और तब चोरी की आदत छूट जाएगी। यह आन्तरिक प्रयोग है। चोरी छुड़वाने के लिए व्यावहारिक प्रयोग भी कराने चाहिए। ऐसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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