________________
संवेग-संवेद और नियन्त्रण की पद्धति
१४३ इसलिए यह आवश्यक है कि शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थी के बौद्धिक विकास की तरफ जैसे ध्यान दिया जाता है वैसे ही उसके भावात्मक विकास की ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके लिए संवेग का परिष्कार करना बहुत आवश्यक है।
किशोर अवस्था के आते-आते शारीरिक उभार के साथ, अंगों के विकास के साथ, कुछ प्रवृत्तियां अनायास बन जाती हैं। इसे नकारा नहीं जा सकता। शिक्षा के क्षेत्र में शरीर-मनोविज्ञान की या जैविक रसायनों के अध्ययन की जो उपेक्षा हुई है उससे शिक्षा का प्रासाद पूरा बना नहीं, अधूरा ही रह गया। शिक्षा का उद्देश्य है- सर्वांगीण विकास। सर्वांगीण विकास में केवल बौद्धिक विकास की बात पर्याप्त नहीं होती। सर्वांगीण विकास के घटक तत्त्व
सर्वांगीण विकास के लिए चार बातें आवश्यक हैं१. शारीरिक विकास २. मानसिक विकास ३. बौद्धिक विकास ४. भावनात्मक विकास
आज के विद्यालयों में बौद्धिक विकास पर्याप्त मात्रा में कराया जाता है और शारीरिक विकास के लिए भी छुटपट प्रयत्न चलते रहते हैं। किन्तु मानसिक विकास और भावनात्मक विकास के लिए बहुत कम संभावनाएं रहती हैं। इन दोनों का विकास होना आवश्यक है। इनके विकास का मूल उपाय है-संवेगों का परिष्कार।
भय एक संवेग है। इसके कारण मनुष्य शारीरिक और मानसिक पीड़ाओं को भोगता है। यदि भय और चिन्ता का संवेग टलता है, खतरे की बात कम होती है तो बहुत सारी बीमारियां भी टल जाती हैं, मनो-कायिक (साइकोसोमेटिक) बीमारियों में परिवर्तन आ जाता है।
__ आदमी भय को छोड़ना चाहता है। भय, क्रोध आदि किसी को अच्छे नहीं लगते। बच्चा भी क्रोध करता है, पर वह जानता है कि क्रोध का परिणाम बुरा होता है। क्रोध से झंझट बढ़ता है। माता-पिता को अच्छा नहीं लगता। लड़ाइयां होती हैं।
पर प्रश्न है कि क्रोध, भय आदि को कैसे मिटाएं ? कैसे कम करें?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org