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________________ १३२ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग स्थितियां ही ऐसी बन गई हैं। एक व्यक्ति से पूछा गया-क्या तुम कभी अपनी संतान को शिक्षा देते हो ? वह बोला- मैं सुबह देरी से उठता हूं, तब तक लड़का स्कूल चला जाता है। जब वह स्कूल से लौटकर आता है तब तक मैं ऑफिस में रहता हूं। जब मैं देरी से घर लौटता हूं, तब तक वह सो जाता है और सुबह जल्दी उठकर चला जाता है। आमने-सामने होने का कभी अवसर ही नहीं आता। केवल रविवार को मिल पाते हैं। साक्षरता और संस्कार इस स्थिति में बालक का निर्माण शिक्षा से जुड़ जाता है। शिक्षा के साथ कुछ ऐसे तत्त्व और जुड़ने चाहिए, जिनसे बच्चे के संस्कारों का निर्माण हो और उसे वह मौका भी मिले कि वह अपने संवेगों और संवेदनाओं का परिष्कार कर सके। आज दोनों कामों को एक ही मंच से करना होगा। बच्चों का निर्माण भी हो और संस्कार-परिष्कार भी हो। शिक्षा के क्षेत्र से ये दोनों काम हो सकते हैं। इस दृष्टि से शिक्षा जगत् का दायित्व दोहरा हो जाता है। यह बहुत बड़ा दायित्व है। 'फेरो' ने बहुत बड़ी बात कही है-'वर्तमान विद्यालय व्यक्ति को साक्षर बनाते हैं, शिक्षित नहीं बनाते।' साक्षर बनाना एक बात है और शिक्षित करना दूसरी बात है। आज की साक्षरता भी कुछ ऐसी हो गई है कि उसकी तुलना कम्प्यूटर या टेपरिकार्डर से की जा सकती है। हमने भ्रमवश स्मृति और बुद्धि को एक मान लिया है। स्मृति और बुद्धि एक नहीं है। कम्प्यूटर में इतनी तीव्र स्मृतियां नियोजित हैं कि आदमी उसके सामने कुछ भी नहीं है, बहुत छोटा है। आज का युग कम्प्यूटर का होता जा रहा है। सूचनाओं, ज्ञान और आंकड़ों का सम्बन्ध स्मृति से है। टेपरिकार्डर सारी बात दुहरा देता है। शिक्षा का काम केवल स्मृति को बढ़ाना ही नहीं है, केवल आंकड़ों से मस्तिष्क को भरना ही नहीं है, साक्षरता ला देना ही उसका काम नहीं है, उसका काम भावों का परिष्कार करना भी है। इसी से व्यक्ति में स्वतंत्र निर्णय और दायित्व बोध की क्षमता विकसित होती है। यह तभी सम्भव है कि शिक्षा केवल साक्षरताभिमुख न रहे। उसमें कुछ और भी जुड़े। ज्योति का प्रज्वलन संवेग और संवेद-ये दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं, क्योंकि वर्तमान में जो सामयिक समस्याएं हैं वे सारी इन दो तत्त्वों के साथ जुड़ी हुई हैं। जो शिक्षा प्रणाली विद्यार्थी को समाज की वर्तमान समस्याओं के संदर्भ में कुछ कार्य करने की प्रेरणा नहीं देती, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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