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________________ शिक्षा और नैतिकता ११९ दैहिक अनुशासन शिक्षा के साथ संबंध हुड़ता है स्थूल जगत् का, हमारे स्थूल शरीर का। शारीरिक अनुशासन के बिना दूसरा अनुशासन आ नहीं सकता और अनुशासनहीनता की समस्या का समाधान हो नहीं सकता। इसलिए शारीरिक अनुशासन बहुत आवश्यक है। जीवन-विज्ञान में उसके कुछ उपाय खोजे गए हैं। उनमें एक उपाय है आसन। आसन कोई नई खोज नहीं है, पुरानी बात है, किन्तु हमने उन आसनों को खोजा है जो हमारे भाव-परिवर्तन में उपयोगी हो सकें। जीवन-विज्ञान में उन आसनों का समावेश किया गया है। दूसरे शब्दों में वह शारीरिक अनुशासन स्वीकृत किया है, जो मानसिक और भावनात्मक अनुशासन में सहयोगी बनता है। शशांक आसन का बहुत महत्त्व है। इसके द्वारा एड्रीनल ग्लैण्ड या तैजसकेन्द्र पर अनुशासन किया जा सकता है। सिद्धासन के द्वारा गोनाड्स-कामग्रंथि पर अनुशासन किया जा सकता है। वासना कितनी ही प्रबल हो, उच्छंखल हो, सिद्धासन के द्वारा उस पर नियंत्रण हो सकता है। यह निश्चित उपाय है काम-वासना पर विजय पाने का। इससे उत्तेजना की प्रबलता मिट जाती है और एक अनुशासित क्रम बन जाता है। एक प्राचीन आचार्य ने गुजराती-राजस्थानी में एक ग्रन्थ लिखा है। उसमें उन्होंने नाभि के पास होने वाली सारी वृत्तियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है। क्रोध, लोभ, अहंकार आदि जहां पैदा होते हैं, उनका विवरण प्रस्तुत करते हुए वे बताते हैं कि ये सारी वृत्तियां नाभि के आसपास पैदा होती हैं। यदि हम नैतिकता की दृष्टि से सोचें तो यह स्पष्ट प्रतीत होगा कि जब तक इन वृत्तियों का अनुशासन नहीं होता तब तक हजार उपक्रम करने पर भी नैतिकता नहीं आ सकती। हमें आंतरिक उपाय खोजने होंगे और उन्हें शिक्षा के साथ अनिवार्यतः जोड़ना होगा। आज की शिक्षा-प्रणाली में अनेक शारीरिक आसन कराए जाते हैं। व्यायाम कराया जाता है, जिससे विद्यार्थी का शरीर स्वस्थ रहे। यह भी शारीरिक अनुशासन का एक पक्ष है, पर भावनात्मक परिवर्तन की दृष्टि से जो आसन अपेक्षित है, उनका समावेश शिक्षा में होना चाहिए। ये आसन ग्रन्थि संतुलन और नाड़ी-संतुलन में सहयोगी बनते हैं। आस्था की समस्या कहा जाता है-समाज की सबसे बड़ी समस्या है अनैतिकता की। यह दूसरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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