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शिक्षा और भावात्मक परिवर्तन २. इन्द्रिय विकास ___ इन्द्रियों के विकास में दो स्थितियां बनती हैं-प्रियता का भाव और अप्रियता का भाव। वह प्रिय-अप्रिय का बोध करने लगता है। वह चीनी खाना पसन्द करता है, नीम का पत्ता खाना नहीं चाहता। चीनी मीठी होती है, नीम कडुवा होता है। उसमें प्रिय-अप्रिय का संबोध स्पष्ट हो जाता है। इन्द्रिय विकास के साथ संवेदन
और संवेग का प्रिय और अप्रिय के साथ संबंध हो जाता है। ३. मानसिक विकास
बच्चा और आगे बढ़ता है। उसमें अच्छा-बुरा का बोध स्पष्ट होता जाता है। वह जानने लगता है, चीनी प्रिय होती है, पर अच्छी नहीं होती। उससे दांत खराब होते हैं, आंत खराब होती हैं, हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। नीम का पत्ता कडुवा होता है, पर स्वास्थ्यप्रद होता है। बच्चे का मानसिक विकास होता है और ये सारी बातें जानने लग जाता है।
इन तीनों-दैहिक विकास, इन्द्रिय विकास और मानसिक विकास- में अनुकरण, वातावरण और परिवेश से सीख लिया जाता है तथा कुछ सुनी सुनाई बातों से सीख लिया जाता है। ४. बौद्धिक विकास
बच्चा स्कूल में जाता है तब वहां उसे पाठ्यक्रम दिया जाता है। उसे लिपि, भाषा, साहित्य आदि का ज्ञान कराया जाता है उससे उसका बौद्धिक विकास होता है और उसमें विश्लेषण की शक्ति आती है। मानसिक विकास से अच्छे-बुरे का ज्ञान तथा संवेदन आदि की जानकारी होती है। बौद्धिक विकास से विश्लेषण, नीति-निर्धारण आदि की शक्तियां जागती हैं। बुद्धि का काम है-व्यवहार का निश्चय करना, विवेक करना। बौद्धिक विकास के साथ बच्चे की क्षमता बहुत बढ़ जाती है।
विद्यालय का जीवन बौद्धिक विकास का जीवन है। पहले तीन विकासों में विद्यालय का कोई संबंध नहीं रहता। वर्तमान में शिक्षा बौद्धिक विकास के साथ जुड़ी हुई है। बौद्धिक विकास में रूपान्तरण की क्षमता कम है। उसमें निर्णय और निश्चय की क्षमता है, विवेक करने की क्षमता है, पर परिवर्तन की क्षमता नहीं
बुद्धि का काम है बात को तर्क में उलझाना, न कि सुलझाना। यह उसकी स्वाभाविक प्रक्रिया है। जो जितनी सीमा में काम कर सकता हैं वह उतनी ही सीमा
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