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________________ शिक्षा का नया आयाम : जीवन विज्ञान १०१ साथ जुड़ी रहती है। जहां एक से दो होते हैं, वहां परतंत्रता आ जाती है। समाज में सापेक्ष स्वतंत्रता हो सकती है। यह परतंत्रतायुक्त स्वतंत्रता है। जो व्यक्ति अहंकार के वशीभूत होकर यहां पूर्ण स्वतंत्रता का अर्थ खोजने लग जाता है, वह कठिनाई पैदा करता है। स्वतंत्रता की सीमा को समझना आवश्यक है। समाजीकरण का मूल आधार है-संवेगों का परिष्कार। यद्यपि संवेग वैयक्तिक होते हैं, फिर भी वे समाज को प्रभावित करते हैं। एक लड़के का गुस्सा पूरे परिवार को विघटित कर देता है। पिता का अहं और क्रोध पूरे राष्ट्र को विनाश के कगार पर ला खड़ा करता है। महामात्य चाणक्य ने लिखा है- जो नेता अपने संवेगों पर नियन्त्रण नहीं रख सकता, वह पूरे राष्ट्र को ले डूबता है। इसलिए यह आवश्यक है कि संवेगों का परिष्कार किया जाए। शिक्षा को इसका माध्यम बनाना चाहिए। कोरी बौद्धिक शिक्षा के परिणाम बौद्धिकता शिक्षा का एक अंग है, पर वह पूरा नहीं है। बौद्धिक विकास के साथ-साथ समाज के प्रति अपने दायित्व का बोध, मानवीय मूल्यों का विकास तथा व्यक्तिगत चरित्र का विकास भी आवश्यक है। कोरी बौद्धिकता से आदमी ज्यादा खतरनाक भी बन सकता है। आजकल बहुत सारे पढ़े-लिखे लोग चोरी-डकैती में भी अपनी बौद्धिकता का उपयोग करते हैं, बल्कि अबौद्धिकों की अपेक्षा वे अपने धन्धे को ज्यादा दक्षता से चला सकते हैं। आज यही सबसे बड़ी समस्या है। समाज तथा शासन-तंत्र में बौद्धिक व्यक्तियों की भरमार है, पर केवल बौद्धिकता से काम नहीं चल सकता। उसके साथ-साथ चरित्र का भी विकास होना चाहिए। दोनों मिलकर ही पूर्ण व्यक्तित्व की रचना करते हैं। जीवन विज्ञान : समन्वित शिक्षा पद्धति आज तक शिक्षा का आधार मस्तिष्क का विकास रहा है, पर अब यह सिद्ध हो चुका है कि ग्रन्थि-तंत्र ही हमारे सारे व्यवहारों का निदेशक है। मस्तिष्कीय ज्ञान की उपेक्षा नहीं की जा सकती, पर उसके साथ साथ ग्रन्थि-तंत्र के विकास के प्रयोगों को भी जोड़ना होगा। ये दोनों एक दूसरे के पूरक होंगे। जीवन-विज्ञान में योग, कर्मशास्त्र और धर्मशास्त्र-इन तीनों का प्रशिक्षण जुड़ा हुआ है। आज की शिक्षा में फिजियोलोजी, एनोटोमी और साइकोलोजी का विशेष महत्त्व है। ये छह विषय मिलकर सम्पूर्ण और समन्वित जीवन-निर्माण करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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