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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग की गति। इस गति से एक घंटा, एक दिन-रात, एक मास, एक वर्ष। यह है एक प्रकाश-वर्ष की दूरी। ऐसे दो अरब प्रकाश-वर्ष। इस दूरी को वह टेलिस्कोप पकड़ लेता है। असंख्य नीहारिकाएं, असंख्य द्वीप और समुद्र। आदमी सोचता है तो दिमाग चकरा जाता है। पर यह है सत्य। अब हम सोचें, कितना विराट् है सत्य।
सत्य के पांच प्रकार या पांच अर्थ हैं(१) अस्तित्व सत्य (४) अविसंवादिता सत्य (२) नियम सत्य (५) प्रामाणिकता सत्य
(३) ऋजुता सत्य १.अस्तित्व सत्य
सत्य का एक अर्थ है-अस्तित्व अर्थात् जगत् का अस्तित्व। हमारा अस्तित्व-जगत् इतना बड़ा है कि उसके विषय में एक भाषा में कुछ कह पाना संभव नहीं है। २. नियम सत्य
सत्य का एक अर्थ है-नियम, जागतिक नियम, सार्वभौम नियम। समय का चक्र अविरल गति से घूम रहा है, यह जागतिक नियम है। दिन होना, रात होना और यह क्रम निरन्तर चलते रहना, यह तगत् का नियम है। गति,स्थिति और परिवर्तन- ये तीनों जागतिक नियम हैं।
__ अस्तित्व सत्य और जागतिक सत्य-ये दोनों सत्य समाज के साथ सीधे जुड़े हुए नहीं हैं। प्रत्यक्षत: इनसे समाज के साथ सम्बन्ध स्थापित नहीं किया जा सकता।
नियम-सत्य का दूसरा संदर्भ है-मनुष्यकृत नियम। वह भी एक सत्य है। मनुष्य नियम बनाता है। उसका पालन होता है और समाज के साथ उसका संबंध जुड़ा रहता है। चाहे धर्म-व्यवस्था के नियम हों या समाज-व्यवस्था के नियम हों, वे सत्य हैं। उन्हीं के आधार पर धर्म-व्यवस्था और समाज-व्यवस्था का निर्णय होता है। एक धर्मगुरु अपने धर्म की आचार-संहिता, मर्यादा और परम्परा के आधार पर निर्णय देता है। एक न्यायाधीश कानून के संविधान के आधार पर निर्णय करता है और समाज-व्यवस्था का संचालक समाज-संहिता के आधार पर निर्णय देता है। बस यह सत्य है। इसमें सचाई है।
ये सारे नियम जागतिक या सार्वभौम नहीं हैं। ये सब कृतक हैं, मनुष्य द्वारा किए हुए हैं। ये सत्य हैं और इनसे समाज का सम्बन्ध जुड़ता है। इनसे सामाजिक
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