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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग की दृष्टि। इससे सारी समस्या सुलझ जाती है। आदमी में अवमानना और अवज्ञा का भाव बहुत प्रबल होता है। जाने-अनजाने वह व्यक्तियों की अवमानना कर देता है । इतिहास को देखें, पता चलेगा, राजा ने सत्ता के मद में एक छोटे से कर्मचारी की अवमानना कर दी, एक छोटे से नागरिक की अवमानना कर दी। उसका परिणाम यह हुआ कि सारी सत्ता को उलटना पड़ा और सम्राट को पदच्युत होना पड़ा।
चाणक्य कौन-सा बड़ा था ? कोई बड़ा नहीं था और यदि राजा के द्वारा उसकी अवमानना नहीं होती तो शायद इतना बड़ा युद्ध भी नहीं होता और नंदवंश का विच्छेद भी नहीं होता, किन्तु अवमानना हुई और उस अकेले व्यक्ति ने, ब्राह्मण ने संकल्प किया- जब तक नंदवंश का विच्छेद नहीं कर दूंगा, तब तक चोटी नहीं बंधेगी। चोटी खुली रहेगी।
हम सामाजिक घटनाओं से, समस्याओं से चिंतित होते हैं, सोचते हैं कि समाज में इस प्रकार की घटनाएं घटती हैं। पर इस बात पर ध्यान नहीं देते कि जो सोचते हैं, उनके मन में भी दूसरों को अपमानित करने की बात निकलती नहीं है। जहां भी वश चलता है, अपना आधिपत्य होता है, अपनी प्रभुता होती है, वहां इस प्रकार का एक गुलाबी नशा छा जाता है आदमी पर उसे इस बात का भान ही नहीं होता कि मेरा व्यवहार दूसरों के प्रति कैसा हो रहा है।
जीवनशैली में बदलाव
ध्यान करने वाले व्यक्ति का सारा व्यवहार बदल जाता है। उसे यह सोचना चाहिए कि उसका क्रोध कितना कम हुआ, व्यवहार कितना बदला, दूसरों को मूल्य देने की भावना कितनी जागी, दूसरों को अपने समान समझने और वैसा व्यवहार करने की वृत्ति कितनी विकसित हुई ।
जिन लोगों ने ध्यान का अभ्यास किया, उनके बदले हुए जीवन के चित्र भी हमारे सामने प्रस्तुत हैं । हमारा कोरे भविष्य में विश्वास नहीं है। हमें वर्तमान में विश्वास, वर्तमान के परिणाम में विश्वास, प्रवृत्ति और परिणाम - दोनों की संयुक्तता में विश्वास है। ध्यान की धारणा ऐसी नहीं है कि अभ्यास करते जाएं, करते जाएं और एक बिंदु कोई आएगा कि बदल जाएगा। ध्यान की धारणा यह है कि आज शुरू करें तो लगना चाहिए कि भीतर में परिवर्तन शुरू हुआ है। भीतर की घटना कभी एक साथ बाहर नहीं आती। बीमारी भीतर में होती है, बाहर आने में महीने लग जाते हैं। कोई भी घटना, अच्छी या बुरी, भीतर में घटित होती है, बाहर आने में उसे काफी समय लगता है। दूसरों को पता चलने में समय लग जाए, कोई चिंता
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