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बंधन होता है। इसी अपेक्षा से कुत्ते को पीटना और बच्चे को पुचकारना-इन दोनों क्रियाओं को एक ही कोटि में रखा गया। दोनों को मोह बताया गया, हिंसा कहा गया। आचार्य भिक्षु ने यही तथ्य निम्नोक्त शब्दों में अभिव्यक्त किया है
___ एकण नै दे रे चपेटी, एकण रो दै उपद्रव मेटी।
__ओ राग-धेष रो चालो, दशवैकालिक संभालो। _ यों तो राग और द्वेष दोनों ही बंधन के कारण हैं, पर गहराई से देखा जाए तो द्वेष की अपेक्षा राग से बंधन अधिक होता है। लेकिन इस गहराई तक जाननेवाले लोग थोड़े ही होते हैं। कोई-कोई की दृष्टि ही इस सत्य को पकड़ पाती है। अधिक लोग तो ऐसे ही होते हैं, जो राग को अच्छा समझते हैं, इसलिए वे रागात्मक प्रवृत्तियां छोड़ने की बात ही नहीं सोचते। आदर्श और व्यवहार ____ आदर्श और व्यवहार जीवन की दो भूमिकाएं हैं। आदर्श आदर्श ही होता है, वहां तक सबकी पहुंच नहीं होती। कोई-कोई व्यक्ति ही वहां पहुंच पाता है, पर इस कारण उसे नीचे नहीं लाया जा सकता। तब इसका विकल्प क्या है? इसका विकल्प है व्यवहार। व्यवहार हर व्यक्ति निभा सकता है। व्यक्ति आदर्श सामने रखता हुआ व्यवहार में चलता चले तो एक दिन आदर्श तक पहुंच सकता है। यदि कोई न भी पहुंच पाए, तो भी उसे आदर्श कभी खंडित नहीं करना चाहिए।
आचार्य भिक्षु ने आदर्श और व्यवहार का सामंजस्य स्थापित किया था। इन दोनों का सामंजस्य बिठानेवाला उन-जैसा दूसरा व्यक्ति मिलना दुर्लभ है, पर बहुत कम लोग उनकी बात सही ढंग से समझ पाए। अधिकतर लोगों ने तो उसे गलत रूप में ही पकड़ा; और इस गलत पकड़ में उनका स्वार्थवादी दृष्टिकोण मुख्य कारण था। लोगों ने यह तो पकड़ लिया, चूंकि साधु-साध्वियों के अतिरिक्त किसी को कुछ भी देना लौकिक दान है, इसलिए वह लोकोत्तर धर्म नहीं है, पाप है, पर उन्होंने यह बात नहीं पकड़ी कि आचार्य भिक्षु ने संग्रह को भी पाप कहा है। स्कूल में बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, पर जहां स्कूल चलाने के लिए भवन-निर्माण का प्रश्न आता है, वहां अहिंसा की ओट ली जाती है। हिंसा-अहिंसा की सारी फिलॉसफी उस समय सामने आ जाती है; पर उन्हें ही जब झूठा मुकदमा
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- आगे की सुधि लेइ
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