SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० : विद्यार्थी और जीवन-निर्माण की दिशा* आगम का एक वाक्य है-उद्देसो पासगस्स नत्थि। इसका अर्थ है-द्रष्टा के लिए उपदेश नहीं है। तब उपदेश किसके लिए है? उपदेश है उनके लिए जो द्रष्टा नहीं हैं, जो अधूरे हैं। द्रष्टा कौन? ऋषि को द्रष्टा कहते हैं। द्रष्टा आत्मा को देखता है, परमात्मा को देखता है, समूचे जगत को देखता है। प्राचीनकाल में ऋषियों को समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। स्वयं राजा-महाराजा लोग उनसे ज्ञान लेते थे। समूची शासन-व्यवस्था पर उनका आध्यात्मिक अकुंश रहता था। इसी लिए उस शासन को धर्मानुकूल शासन कहा जाता था। यह एक तथ्य है कि जब तक देश में ऋषियों का उचित सम्मान रहा, प्रतिष्ठा रही, देश की संस्कृति अपने गौरव के अनुरूप बनी रही, सुसंस्कार बने रहे, लेकिन जब से ऋषियों के स्थान पर राजनेताओं का महत्त्व बढ़ा, तब से संस्कृति का ह्रास होना प्रारंभ हो गया, गलत संस्कार पनपने लगे। सुसंस्कारों का मूल्य हम गहराई से चिंतन करके देखते हैं तो पाते हैं कि जीवन में सुसंस्कारों का सर्वाधिक मूल्य है। चूंकि ऋषियों के निकट सान्निध्य से सुसंस्कारों का वपन होता है, उन्हें अंकुरित और विकसित होने का वातावरण मिलता है, इसलिए विद्यार्थीकाल में बालकों को उनके सान्निध्य में रखने का क्रम था। ऋषि को आप संकीर्ण अर्थ में न लें, बल्कि व्यापक संदर्भ में देखें। गुरुकुल के कुलपति और आचार्य भी ऋषि का-सा जीवन जीते थे। उनके जीवन से सुसंस्कारों का सौरभ फूटता था। विद्यार्थी छोटी अवस्था में गुरुकुल में आते। युवा होकर वहां से बाहर निकलते। इस अवधि में उनका जीवन सुसंस्कारों से भावित हो जाता था। सुसंस्कारित *विद्यार्थियों के बीच प्रदत्त प्रवचन। - आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy