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________________ हड्डियां लोगों के पैरों के नीचे न आएं, तब तो अलग बात है, पर गंगा में डालने से उसकी सद्गति होगी, इस चिंतन या विश्वास के साथ किया जाता है तो यह जैन- संस्कारों के प्रतिकूल है। जैन दर्शन के अनुसार व्यक्ति की सद्गति या दुर्गति तो उसकी मौत के साथ ही हो जाती है। बाद में सद्गति या दुर्गति होने की बात उसकी मान्यता से कहीं मेल नहीं खाती। इसी प्रकार कागोल के द्वारा मृतक तक कुछ पहुंचाने की बात भी जैनत्व से बिलकुल संगत नहीं है। म नहीं तो घोड़े नहीं ठाकुर साहब का देहांत हो गया। कंवरसाहब उनके अनन्य भक्त थे । मृत्यु के बाद उन्होंने ब्राह्मणों को भोजन कराया। ब्राह्मणों ने देखा कि ठाकुर का कंवर भोला है, उससे हम जितना चाहें, उतना धन ऐंठ सकते हैं। अतः उन्होंने सोचा कि अवसर का लाभ उठाना चाहिए । ब्राह्मणों ने कंवरसाहब को बुलाकर कहा - ' कंवरसाहब! आपने हमें भोजन कराया, वह तो आपके पिताजी तक पहुंच गया, पर एक बात और सोचने की है। आपके पिताजी दाहिने पैर से लंगड़ाते थे, अतः वे वहां भी लंगड़ाएंगे। वहां कोई वाहन भी नहीं है। ऐसी स्थिति में उन्हें वहां बहुत कठिनाई होगी। अतः वहां घोड़ा पहुंचाना बहुत जरूरी है।' कंवरसाहब ने पूछा - ' इसका तरीका क्या हो सकता है ?' ब्राह्मणों ने कहा- 'तरीका तो बिलकुल सीधा ही है। आप यहां ब्राह्मणों को घोड़े देंगे और वहां घोड़ा पहुंच जाएगा। ' कंवरसाहब ने अपने कामदार को बुलाकर सब ब्राह्मणों को एक-एक घोड़ा देने का आदेश दे दिया। कामदार ने देखा, ब्राह्मणों ने कंवर साहब को अपने जाल में गहरा फंसा लिया है। ऐसी स्थिति में सीधे तो कंवर साहब मेरी बात नहीं मानेंगे। अब तो कोई ऐसी युक्ति काम में लेनी चाहिए, जिससे ब्राह्मणों को सबक मिले और कंवरसाहब इनके जाल से बाहर निकल सकें। उसने घोड़े तैयार कराए और साथ ही भट्ठियों में लोह के कुश भी गरम करा दिए। समय पर सब ब्राह्मण आए। कामदार ने कहा - 'ठाकुरसाहब के पैर में तकलीफ थी, पर ये घोड़े ऊंचे हैं, इसलिए वे चढ़ नहीं सकेंगे। वहां कोई वैद्य तो है नहीं, जो बीमारी का उपचार कर सके । इसलिए यहां हम ब्राह्मणों के डाम लगाएंगे। वे वहां पर ठाकुरसाहब के लग धर्म का स्वरूप ६१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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