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________________ कट्टर नास्तिक और भौतिकवादी से भी समझौता कर सकता है। इसके विपरीत यदि यह दृष्टिकोण छोड़कर चले तो उसे व्यवहार में पग-पग पर उलझनें झेलनी पड़ेगी। नियति और पुरुषार्थ नियति और पुरुषार्थ दो तत्त्व हैं। एक मान्यता के अनुसार व्यक्ति हजार प्रयत्न करे, फिर भी जो होना है, वही होगा। भावी को टालने की शक्ति किसी में नहीं है। इसके विपरीत दूसरी मान्यता पुरुषार्थ पर बल देती है। स्याद्वाद : सामंजस्य का सूत्र जैन-दर्शन एक परम पुरुषार्थवादी दर्शन है। वह चाहता है कि मनुष्य कभी अकर्मण्य न बने। वह सदा ही कुछ-न-कुछ करता रहे। जिज्ञासा की जा सकती है कि क्या जैन-दर्शन नियति को नहीं मानता। नहीं क्यों मानता, जैन-दर्शन में पुरुषार्थ के साथ नियति को भी स्थान प्राप्त है। यद्यपि दोनों को मानने का अर्थ है-दो घोड़ों की सवारी करना, पर सामंजस्य का सूत्र जिसके हाथ में है, वह दो तो क्या, हजार घोड़ों की सवारी भी कर सकता है। वह आकाश-पाताल, दिन-रात, प्रकाश-अंधकार, सुख-दुःख' में सामंजस्य बिठा सकता है। स्याद्वाद एक ऐसा धागा है, जो बिखरे हजारों मोतियों की एक माला बना देता है। यह एक ऐसा शस्त्र है, जिससे सज्जित होनेवाला किसी से पराजित नहीं होता। संत कबीर ने कहा है अड़ते से टलता रहे, जलते से जल होय। 'कबीरा' ऐसे पुरुष को गंज सके न कोय॥ मुझे सखेद कहना पड़ता है कि समन्वय का यह सिद्धांत बहुतों ने नहीं समझा है। आईंस्टीन का सिद्धांत थ्योरी ऑफ रिलेटीविटी आज के विद्यार्थी समझते हैं, इसलिए वे उसे जानते भी हैं, पर भगवान महावीर को नहीं जानते, जिन्होंने कि स्याद्वाद का व्यापक सिद्धांत दिया है, मानवजाति का बड़ा उपकार किया है। कुछ लोग यह सिद्धांत जानते तो हैं, पर इसे ठीक ढंग से समझते नहीं। वे इसे संशयवाद के रूप में स्वीकार करते हैं। यह एक बड़ी भ्रांति है। स्याद्वाद में संशय को कहीं कोई स्थान नहीं है। यह तो सत्य को समग्रता से जानने का परम वैज्ञानिक सिद्धांत है। नियति और पुरुषार्थ .४३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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