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बाद चार माह तक भूख नहीं लगेगी तो उसे कौन मंजूर नहीं करेगा ? फिर जहां शाश्वत सुखों की प्राप्ति हो, उस मुक्ति को भला कौन इनकार कर सकता है ?
मोक्ष का साधन - कषाय - मुक्ति
मुक्ति हमारा साध्य है तो उसके लिए साधन की भी अपेक्षा है । साधन बिना साध्य की सिद्धि नहीं हो सकती । रसोई बनानी है तो उसके लिए आटा, बेसवार, बरतन, चूल्हा, ईंधन और पानी की भी जरूरत होगी। मोक्ष का साधन है - कषाय मुक्ति । कषाय यानी रागद्वेषात्मक उत्ताप । क्रोध, मान, माया, लोभ आदि उसके प्रकट रूप हैं। क्रोध, मान, दंभ, लोभ, वासना आदि जब व्यक्त होते हैं, तब शरीर की नसें तन जाती हैं। कषाय मिटे बिना मुक्ति नहीं हो सकती । व्यक्ति घंटों तक मौन करे, घर छोड़कर जंगल में रहे, आगम पढ़े या बहुत लंबी तपस्या करके अपना शरीर सुखा दे, फिर भी यदि कषाय प्रबल है तो जो परिणाम आना चाहिए, वह नहीं आ सकता ।
कषाय : संसार का मूल
अभी हम भीतर बैठे थे तो आपके भादरा के वैद्य मोदीजी एक साधु को देख रहे थे। हमने उनको बताया - ' इतने माह तक दवा दी, पथ्य-परहेज भी रखा, फिर भी बीमारी नहीं गई। उस साधु को देखकर मोदीजी ने कहा - ' आपने सब कुछ किया, पर रोग का मूल नहीं पकड़ा। उसे पकड़े बिना दवा क्या करेगी ?' यही बात आप लोगों से मैं कहता हूं कि संसार का मूल कषाय है। जब तक भीतरी कषाय नहीं मिटता, तब तक आप मुक्ति के साध्य की प्राप्ति नहीं कर सकते। एक सीमा तक कषाय मिटे बिना मोक्ष तो दूर, स्वर्ग भी मिलना कठिन है। अतः त्याग तपस्या जितनी संभव हो उतनी करें, पर अपना मन, वृत्तियां और आदतें बदलना जरूरी है।
धर्म : लक्ष्य और फल
कुछ लोग अगले जन्म के भौतिक सुखों के लिए धर्म करते हैं, पर यह धर्म का सही लक्ष्य नहीं है। धर्म का फल तत्काल मिलता है। व्यक्ति आज धर्म करे और फल अगले जन्म में मिले, इसमें मेरा विश्वास नहीं है। यह कहा जाता है कि आम का वृक्ष बारह वर्षों से फलता है, पर धार्मिक क्रिया का फल तो तत्काल मिलता है।
साध्य और सिद्धि
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