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________________ धर्म के दो रूप हैं—पर्व-धर्म और नित्य-धर्म। पर्वधर्म का अर्थ है—क्रियाकांड-उपासना। नित्य-धर्म का अर्थ है-सत्य, अहिंसा....मैत्री आदि का व्यवहारगत होना। हालांकि क्रियाकांड या उपासना कोई निरर्थक तत्त्व नहीं है, उसका भी जीवन में मूल्य है, तथापि मात्र वे क्रियाकांड हमारे लिए उपयोगी हैं, जो नित्य-धर्म को पुष्ट करें, जीवन की पवित्रता साधे। जो क्रियाकांड इस उद्देश्य की पूर्ति नहीं करते, उनकी कोई सार्थकता समझ में नहीं आती। लोग अपने-अपने धर्म को ऊंचा और श्रेष्ठ साबित करने का प्रयत्न करते हैं, पर सबसे श्रेष्ठ और पवित्र धर्म है-सत्य और अहिंसा। इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि इसे सिद्धांततः सभी एकमत से स्वीकार करते हैं। इसकी दूसरी विशेषता है कि इसे करने के लिए व्यक्ति को अतिरिक्त समय लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। बस, अपने हर व्यवहार/प्रवृत्ति के साथ जोड़ने की अपेक्षा है। यह धर्म का व्यावहारिक धर्म है और व्यावहारिक धर्म ही जाग्रत धर्म है। विजा वाक्खा पानीला ISBN 81-7195-103-1 de Jain Education Interna For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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