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• हिंसा और भय तथा अभय और अहिंसा में तादात्म्य संबंध है। (२०) • जिस दिन धर्म को भी प्रयोग का धरातल प्राप्त होगा, उस दिन विज्ञान
भी धर्म के समक्ष प्रणत हो जाएगा। (२४) • गुणहीन व्यक्ति किसी के आकर्षण का केंद्र नहीं हो सकता। (३१) • जो स्वयं नहीं बदलता, वह दुनिया को भी नहीं बदल सकता। (३३) • धन का अनावश्यक संग्रह अनेक विकृतियां एवं कठिनाइयां पैदा करता
है। (३६) • परिस्थितियां आपको बदलने के लिए बाध्य करें, उससे पूर्व ही आप
संभलें। समझदारी और विवेक का तकाजा यही है। (३७) • कौन व्यक्ति धर्मस्थान में जाकर कितनी पूजा-उपासना करता है, यह
धार्मिकता की सही कसौटी नहीं है। सही कसौटी यह है कि वह लोगों
के साथ कैसे पेश आता है। (४०) • स्याद्वाद एक ऐसा धागा है, जो बिखरे हजारों मोतियों की एक माला
बना देता है। (४३) • तपस्या उस सीमा तक ही करनी चाहिए, जिस सीमा तक मानसिक
प्रसन्नता रह सके। (४४)
सही दिशा में किया गया पुरुषार्थ कभी निष्फल नहीं होता। (४५) • हालांकि ज्योतिष की बहत-सी बातें ज्यों-की-त्यों मिल जाती हैं, तथापि
उसके आधार पर पुरुषार्थहीन बनकर बैठ जाना, उचित नहीं है। (४६) • शरीर को कष्ट देना धर्म नहीं है। धर्म की साधना है-कष्ट आएं तो
उन्हें समभाव से सहना। (४७) • निष्ठा का बल अचिंत्य है। (४९) • आत्मशांति और धर्म में अविनाभावी संबंध है। (५४) • जो उपासना व्यक्ति की आत्मपवित्रता में हेतुभूत बनती है, आत्मशांति
का साधन बनती है, वह निश्चय ही धर्म है। (५५) यदि आचार के साथ उपासना भी चलती है तो कोई कठिनाई नहीं, बल्कि सोने में सुगंध की बात है, पर आचार को सर्वथा गौण करके केवल उपासना और क्रियाकांडों को सब-कुछ मान लेना कतई उचित नहीं है। (५९)
प्रेरक वचन
.३४५.
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