________________
साधना ही है। आंतरिक सक्रियता यानी जागरूकता। यह जितनी अधिक बढ़ती है, साधना उतना ही अधिक रंग लाती है। इसलिए प्रत्येक साधक को अधिक-से-अधिक जागरूक बनना चाहिए, अप्रमत्त होकर विहरण करना चाहिए।
सरदारशहर २९ मई १९६६
.३१२
आगे की सुधि लेइ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org