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________________ होती, बल्कि मैं तो ऐसा मानता हूं कि इस दिशा में प्रयत्न न करना, अपने कर्तव्य से विमुख होना है। इसलिए हम अणुव्रत के माध्यम से समाज में व्याप्त प्रत्येक बुराई के विरोध में तटस्थ भाव से आवाज उठाते हैं। चुनाव और अणुव्रत कल ही जैनेंद्रजी ने कहा-'इलेक्शन का समय निकट आ रहा है। इस कारण अंधाधुंध की स्थिति चल रही है। जैसे-तैसे अमुक पार्टी या अमुक व्यक्ति की विजय के लिए प्रयत्न हो रहा है। इसमें औचित्यअनौचित्य का बिलकुल ध्यान नहीं रहता। इस अनैतिक वातावरण को मिटाने में अणुव्रत ही सक्षम है, क्योंकि इसका किसी पार्टी, वर्ग या व्यक्तिविशेष से लगाव नहीं है। तटस्थ भाव से यह कड़ी चेतावनी दे सकता है। यह काम सामयिक है और करणीय है। अतः अणुव्रत को यह काम करना चाहिए।' ___ मैं जैनेंद्रजी के इस विचार से सहमत हूं कि अणुव्रत चुनाव का अनैतिक वातावरण मिटाने में सक्षम है। वह सभी संबद्ध व्यक्तियों को समान रूप में उचित बात कह सकता है, चेतावनी दे सकता है। इसलिए अणुव्रती कार्यकर्ताओं को इस दृष्टि से व्यवस्थित अभियान शुरू करना चाहिए। समता निषेधात्मक भी है कुछ व्यक्ति अहिंसा यानी समता को केवल विधेयात्मक मानते हैं, लेकिन यह मानना भूल है। अहिंसा के विधेयात्मक और निषेधात्मक दोनों रूप हमारे सामने हैं। 'अच्छाई करो' और 'बुराई मत करो' इन दोनों वाक्यों का अभिधेय एक ही है। 'सबके साथ मैत्री रखो' और 'किसी के साथ वैर मत रखो'-इन दोनों बातों का फलित एक ही है। इसलिए समता को केवल विधेयात्मक नहीं माना जा सकता। उसे दोनों रूपों में स्वीकार करना होगा। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि समता की साधना व्यक्ति को निष्क्रिय बना देती है। वह प्रवृत्ति करने में उदासीन-सा हो जाता है, पर मेरा चिंतन इससे भिन्न है। मैं मानता हूं कि समता सक्रियता का फलित है। वह तो एक क्रांति है। निष्क्रिय जीवन में वह फलित नहीं हो सकती। हां, इतना अवश्य है कि यह सक्रियता आंतरिक होती है। इस स्थिति में बाह्य सक्रियता स्वयं कम हो जाती है। वैसे समता की साधना आंतरिक समता का दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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