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________________ एक रुपए से कमरा भरना है पिता ने अपने दोनों पुत्रों को एक-एक रुपया संभलाते हुए निर्देश दिया कि अपना-अपना कमरा कोई चीज खरीदकर उससे भर दो। बड़े बेटे ने बहुत सोचा, पर उसे ऐसी कोई चीज ध्यान में नहीं आई, जिसे एक रुपए में खरीदकर उससे पूरा कमरा भरा जा सके। अंततः उसे एक बात सूझी। उसने एक रुपए की एक गाड़ी मिट्टी मंगाई और उसे सारे कमरे में बिछा दी। छोटे बेटे ने चिंतन किया कि पिताजी ने जब एक रुपए में पूरा कमरा भरने की बात कही है तो निश्चय ही इसमें कोई रहस्य होना चाहिए। भाई साहब ने तो खैर, अपना कमरा मिट्टी से भर दिया है, पर इतना सुंदर कमरा मिट्टी से भरने के लिए तो नहीं है। मुझे तो अपना कमरा किसी अच्छी चीज से भरना चाहिए। वह एकाग्र बनकर सोचने लगा कि एक रुपए में कमरा भरा जा सके, इतनी पर्याप्त अच्छी चीज क्या आ सकती है। कुछ देर चिंतन-धारा में बहते-बहते वह किनारे पहुंच गया। वह तत्काल उठकर बाजार गया और उसने एक रुपए की कुछ मोमबत्तियां और एक माचिश की पेटी खरीदी। घर आकर उसने अपने कमरे के चारों कोनों में चार मोमबत्तियां जला दीं। सारा कमरा प्रकाश से जगमगा उठा। बंधुओ! आप देखें मोमबत्ती कमरे को प्रकाशित कर सकती है, किसी का भी कमरा प्रकाशित कर सकती है। उसके सामने कोई भेदरेखा नहीं है, पर करती है उसी का कमरा, जो उसे जलाता है। जो मोमबत्ती जलाता ही नहीं, रेत ही डालता है, उसका कमरा कैसे प्रकाशित हो सकता है ? यही बात समता के सिद्धांत के संदर्भ में है। समता का दर्शन निस्संदेह जीवन को शांति और सुख के प्रकाश से आलोकित करनेवाला है, पर करता उन्हीं के जीवन को है, जो इसे व्यवहार्य बना पाते हैं। संसार में ऐसे नासमझ और अभागे लोगों की कोई कमी नहीं है, जो इस महान सिद्धांत का भी लाभ नहीं उठा पाते। समता स्वयं की वृत्तियों से संबद्ध है समता के बारे में एक बात और समझने की है। समता या अहिंसा का संबंध मूलतः व्यक्ति की अपनी वृत्तियों से है। दूसरा उसकी प्रवृत्ति के निमित्त से सुखी बनता है या दुखी, यह बहुत गौण बात है। यह उसके समत्व की कसौटी नहीं है। उसके समत्व की कसौटी उसकी स्वयं की आत्मा ही है। इसका कारण भी है। व्यक्ति चाहकर भी किसी को सुखी .३०८ - आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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