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________________ आत्म-निरीक्षण करें बंधुओ! आप उस व्यक्ति की नासमझी पर तरस खा सकते हैं, पर आप अपना आत्म-निरीक्षण तो करें। कहीं ऐसी ही नासमझी आप स्वयं तो नहीं कर रहे हैं? क्षणिक भौतिक सुखों और नश्वर धन-वैभव की आसक्ति में कहीं दुःख-मुक्ति का आवाहन सुना-अनसुना तो नहीं कर रहे हैं ? जैसाकि प्रारंभ में मैंने कहा, धर्म सुख और शांति का मार्ग है। वैसे, सुख-प्राप्ति और दुःख-मुक्ति दो बातें नहीं हैं। अणुव्रत धर्म का ही सरल संस्करण है। वह दुःख-मुक्ति का आवाहन है, शांति का पैगाम है। संतजन विद्याधर की तरह दुःख-मुक्ति के पथ पर आने का आह्वान कर रहे हैं, शांति का पैगाम सुना रहे हैं । उसे सुनकर भी यदि आप उसे स्वीकार नहीं करते हैं तो संतजन चाहकर भी आपको दुःख-मुक्त नहीं कर सकेंगे, शांति का अनुभव नहीं करा सकेंगे। मैं समझता हूं, आपमें से एक भी व्यक्ति उस राहगीर की तरह स्वयं को नासमझ कहलाना पसंद नहीं करता। इसलिए दुःख-मुक्ति और शांति के पैगाम-अणुव्रत को स्वीकार करें। __ अणुव्रत व्यक्ति को आत्मानुशासी बनाता है, उसके जीवन में संयम के बीज बोता है। यह एक त्रैकालिक तथ्य है कि संयम सुख का मौलिक आधार है, शांति का वाचक है। जैसे-जैसे जीवन में संयम का विकास होता जाता है, वैसे-वैसे व्यक्ति गहरे-से-गहरे सुख और शांति की अनुभूति करने लगता है। आप भी यह बात समझें और संयममय जीवन की ओर मुड़ें, अणुव्रत के राजपथ पर आएं। आपके जीवन का क्षण-क्षण सुख और शांति की अनुभूति से गुजरने लगेगा। पीलीबंगा १४ मई १९६६ • २९८ - आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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