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________________ ४१ : अनेकांत और वीतरागता सर्वश्रेष्ठ दर्शन ___संसार में वेदांत, बौद्ध, जैन, जैमिनी आदि अनेक दर्शन हैं। मनुष्यजीवन को दिशा-दर्शन देने में दर्शन की बहुत बड़ी उपयोगिता है। आप पूछ सकते हैं कि कौन-सा दर्शन अनुकरणीय है। मैं किसे अनुकरणीय बताऊं और किसे अननुकरणीय? मेरी दृष्टि में अनुकरणीय वही है, जो सबको संतोष दे सके। संतोष वही दे सकता है, जो सब बातों का समन्वय और सामंजस्य कर सके, सभी प्रकार के विचारों को स्थान दे। इस अपेक्षा से संसार के समस्त दर्शनों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-एकांत दर्शन और अनेकांत दर्शन। एकांत का सीधा-सा अर्थ है-आग्रह। कोई विचार पकड़ लेने के पश्चात उसे छोड़ने की बात ही समाप्त हो जाती है, वह आग्रह है। जहां आग्रह है, वहां विग्रह है। अनेकांत समन्वय और सामंजस्य का मार्ग है। इसके द्वारा परस्पर बिलकुल विरोधी विचारों में भी बहुत अच्छा सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है। इसलिए अनेकांत में कोई विग्रह नहीं है। 'मैं कहता हूं, वह बात ठीक है और दूसरा कहता है, वह भी ठीक हो सकती है'-इस प्रकार की चिंतन-शैली से विरोधी विचारों में भी समझौता हो सकता है। आचार्य हेमचंद्र ने अयोगव्यवच्छेदिका में कहा है इमां समक्ष प्रतिपक्षसाक्षिणामुदारघोषामवघोषणां ब्रुवे। न वीतरागात्परमस्ति दैवतं, न चाप्यनेकांतमृते नयस्थितिः।। - मैं एक बात सबकी साक्षी से कहता हूं। विरोधी-अविरोधी सब _मेरी बात सुनें। इस संसार में वीतराग से बढ़कर कोई इष्ट नहीं है और अनेकांत से बढ़कर कोई सिद्धांत नहीं है, दर्शन नहीं है। अनंत सत्य की प्राप्ति का दर्शन सचमुच अनेकांत का महान दर्शन देकर जैन-तीर्थंकरों ने संसार का बहुत बड़ा उपकार किया है। इसकी तुलना समुद्र के साथ की जा सकती. अनेकांत और वीतरागता -- २५९ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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