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________________ लोगों से कहना चाहता हूं कि यह समानता की बात उचित नहीं है। आक, थूहर, भैंस और गाय-इन चारों का ही दूध हालांकि सफेद होता है, तथापि एक जैसा नहीं है। गुण-गुण में कितना अंतर है, यह मुझे बताने की जरूरत नहीं। यदि गाय और भैंस के दूध के स्थान पर कोई आक का दूध पी ले तो क्या परिणाम आएगा, यह आप स्वयं समझ सकते हैं। बंधुओ! जब हाथ की पांचों अंगुलियां भी एक समान नहीं होतीं, तब सभी साधुसाध्वियां समान कैसे हो सकते हैं ? इसलिए इस संदर्भ में विवेक जगाने की अपेक्षा है। आप सूत्र रूप में एक बात समझ लें कि साधु त्यागी होना चाहिए, फिर भले वह किसी वेश में क्यों न हो, किसी पंथ से संबद्ध क्यों न हो। जो त्यागी है; अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह-इन पांचों महाव्रतों की अखंड आराधना करता है, वही गुरु बनने का अधिकारी है। वही आपको कल्याण का रास्ता दिखा सकता है। भोगी और मोह-माया में फंसे व्यक्ति से यह आशा कैसे की जा सकती है? बाप यदि शराबी है, दुर्व्यसनी है, दुराचारी है तो वह बेटे को सुसंस्कार कैसे दे सकेगा? अध्यापक यदि भ्रष्ट है तो छात्रों में सदाचार के संस्कार वपित कैसे कर सकेगा? यही बात अध्यात्म के क्षेत्र में गुरु की है। गुरु यदि कंचन-कामिनी का त्यागी नहीं है तो वह लोगों को सत्पथ कैसे दिखा पाएगा? उससे वैसी आशा करना ही भूल है। इसलिए मैंने विवेक की बात कही। कहा जाता है कि हंस दूध और पानी को अलग-अलग कर देता है। इसलिए हंस-विवेक बहुत प्रसिद्ध है। आपको भी यह विवेक जगाना चाहिए, जिससे कि आप अच्छाई और बुराई का भेद कर सकें, अच्छे और बुरे को अलग-अलग देख सकें। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो अच्छे-बुरे का भेद समझते तो हैं, पर व्यवहार में वह भेद नहीं करते। मैं इसे भी गलत मानता हूं। जो लोग भेद समझते ही नहीं, उनसे तो खैर यह अपेक्षा नहीं की जा सकती, पर जो इसे समझते हैं, उनसे तो यह अपेक्षा की ही जा सकती है। जौहरी की विधवा ने अपने पुत्र से कहा-'बेटे! तुम्हारे पिताजी अच्छे जौहरी थे। हमारे रत्नों का व्यापार था। उनके समय का रत्नों की एक पोटली पड़ी है। इन दिनों अपने घर की आर्थिक व्यवस्था बहुत माली है। अतः तुम एक काम करो। पोटली लेकर अपने चाचाजी के पास जाओ और सारे रत्न बेचकर रकम कर लो। उसके ब्याज से हमारा काम चलता रहेगा। अच्छे और बुरे का विवेक .२४५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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