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- अज्ञान क्रोध आदि सभी प्रकार के पापों से भी ज्यादा कष्टकर है,
क्योंकि इससे घिरे रहने से व्यक्ति अपने हित और अहित का
विवेक नहीं कर पाता। .....वही पंडित है
संसार में बहुत-से प्राणी अज्ञान से अपनी जिंदगी बरबाद कर लेते हैं। यदि सत-असत का ज्ञान हो जाए तो पतन का मार्ग कौन अपनाना चाहेगा ? गीता में कहा गया है
यस्य सर्वे समारम्भाः, कामसंकल्पवर्जिताः।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं, तमाहुः पण्डितं बुधाः॥ - जिस व्यक्ति की हर क्रिया कामनारहित है, जिसके कर्म ज्ञान रूपी
अग्नि से नष्ट हो गए हैं, वह पंडित होता है। ज्ञान सुनने के लाभ
सचमुच यह बहुत गहरी बात है। हर व्यक्ति को इसे समझना चाहिए। दशवैकालिक सूत्र में कहा गया है
सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं।
उभयं पि जाणई सोच्चा, जं छेयं तं समायरे॥ - ज्ञान सुनने से ही व्यक्ति को अच्छे और बुरे का विवेक होता है। यह विवेक हो जाने के पश्चात ही वह बुरा मार्ग छोड़ने और
अच्छे मार्ग पर चलने का संकल्प कर पाता है। श्रवण की अरुचि क्यों
मैं देखता हूं, बहुत-से व्यक्ति ऐसे भी होते है, जो सुनने में रुचि नहीं रखते। इसका कारण ? कारण हैं आंतरिक वृत्तियां। जब आंतरिक वृत्तियों में माया और लोभ दोनों छा जाते हैं, तब सन्मार्ग स्वीकार करने में बाधा पैदा हो जाती है। यही कारण है कि हम लोग अपने प्रवचन-प्रवचन में लोगों को इन आंतरिक शत्रुओं को पराजित करने का उपदेश देते हैं। इससे प्रेरित होकर बहुत-से व्यक्ति इस दिशा में प्रवृत्त होते हैं, अपने पुरुषार्थ का नियोजन करते हैं, पर जो लोग कर्म को ही प्रबल मानते हैं, वे यह युद्ध करने को तैयार नहीं होते। वे कहते हैं
कर्मप्रधान विश्व करि राखा। जो जस करि वैसा फल चाखा॥
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