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________________ ३६ : पूंजीवाद और अपरिग्रह साधु-संतों के प्रति आकर्षण क्यों आज का युग भौतिकताप्रधान युग है। संसार में अधिक-करके लोगों का आकर्षण सत्ता, धन-संपत्ति और वैभव के प्रति है। प्रश्न होता है कि ऐसी हालत में भारतीय जन-मानस में साधु-संतों के प्रति आकर्षण क्यों है। साधु-संतों की स्थिति आप जानते ही हैं। वे नंगे पांव चलते हैं। रोटी-पानी भिक्षा से प्राप्त करके अपना काम चलाते हैं। अपने सारे कार्य अपने हाथों से करते हैं। पूरा श्रमिक का जीवन जीते हैं। कोई जादू या चमत्कार वे जानते नहीं और कदाचित जानते भी हैं तो दिखाते नहीं।...इसका सीधासा समाधान यह है कि भारतीय संस्कृति त्यागप्रधान संस्कृति है; संयमप्रधान संस्कृति है। वह त्याग और संयम को सर्वोच्च मूल्य देती है, सत्ता, धन-संपत्ति और वैभव को नहीं। साधु-संत त्याग और संयम के प्रतीक होते हैं। साधु-संतों के प्रति भारतीय जन-मानस का आकर्षण उसी त्याग और संयममय संस्कृति की परंपरा का प्रतीक है। कुछ लोग इसे अंधपरंपरा भी कह सकते हैं, पर मैं इसे अंधपरंपरा नहीं मान सकता। अंधपरंपरा का निर्वाह एक अंधा व्यक्ति तो कर सकता है, पर बुद्धिवादी वर्ग कैसे कर सकता है? धरती पर स्वर्ग उतर सकता है साधु-संतों के प्रति भारतीय जन-मानस का यह आकर्षण और आस्था-भाव शुभ का सूचक है। मैं मानता हूं, यदि यह आकर्षण और श्रद्धाभाव शब्दों, विचारों और चिंतन तक ही सीमित न रहकर जीवन की प्रवृत्तियों में आ जाए तो सोने में सुगंध की बात हो सकती है, भारतवर्ष की धरती पर स्वर्ग उतर सकता है। ऐसी स्थिति में संसार के दूसरे-दूसरे देशों के लोग इसे नुमाइश की तरह देखने आएं तो कोई आश्चर्य नहीं। पूंजीवाद और अपरिग्रह । २२९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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