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नहीं दे पाए। उन्होंने कहा-'तुम्हारी दीक्षा ग्रहण करने की तीव्र भावना है तो हम तुम्हारे इस कार्य में बाधक नहीं बनेंगे, पर हमने तुम्हारी शादी की सारी तैयारी कर रखी है, इसलिए एक बात तो तुम्हें हमारी माननी ही होगी। एक बार तुम शादी कर लो, जिससे कि हमारा गृहांगण अनब्याहा न रहे। फिर तुम जब भी चाहो, तब दीक्षा ले लेना। हम तुम्हें नहीं रोकेंगे।'
यद्यपि जंबूकुमार सांसारिक भोगों से बिलकुल विरक्त हो चुका था, शादी के प्रति उसके मन में किंचित भी आकर्षण नहीं था, तथापि मातापिता का आग्रह नहीं टाल सका। उसने इस शर्त के साथ शादी करना मंजूर कर लिया कि सभी को मेरे साधु बनने के निर्णय की बात पहले ही बतानी होगी, ताकि किसी के साथ धोखा न हो।
माता-पिता ने सोचा. यह तो कहने की बात है। फेरे पड़े कि उस चक्कर में फंस जाएगा और दीक्षा की बात विस्मृत हो जाएगी। उन्होंने पुत्र की शर्त मंजूर कर ली। सभी को जंबू के दीक्षा लेने की बात बता दी गई।
जंबू के माता-पिता की तरह ही अन्य लोगों ने भी यह बात गंभीरता से नहीं ली। यथाशीघ्र आठ कन्याओं के साथ कुमार की शादी कर दी गई। आठ-आठ पुत्रवधुओं की पायलों की झंकार सुन माता-पिता की प्रसन्नता का कोई पार नहीं था। बहुओं को समझाते हुए सास ने कहा-'देखो, तुम आठों के कौशल की कसौटी है। जंबू दीक्षा की बात कर रहा है। उसका यह विचार तुम सब परिवर्तित कर सकीं, तभी तुम्हारी सफलता है। मुझे विश्वास है, तुम अपने पुरुषार्थ में सफल होओगी। वैसे भी तुम आठ-आठ हो और वह है अकेला। तुम ऐसा जाल बुनना कि उसके लिए कहीं बाहर निकलने का कोई अवकाश ही न रहे। .......'
___ रात्रि का समय हुआ। जंबू अपने शयनकक्ष में पहुंचा। सास की सीख के अनुसार आठों पत्नियां पूरी तैयारी के साथ समुपस्थित थीं। वार्ता प्रारंभ हुई। पत्नियां जंबूकुमार को कनक-कामिनी के पाश में बांधने के लिए प्रयत्नशील थीं तो कुमार मोहमाया के भंवर में फंसी पत्नियों को उससे बाहर निकालने के लिए सचेष्ट था।
एक घटिका बीती। दूसरी घटिका बीती। तीसरी चौथी और
आकांक्षाओं का संयम
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