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________________ सिद्ध करता है, वह साधु है। मैं मानता हूं, यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात है । साधु-संत उभयानुकंपी होते हैं। वे अपना हित तो साधते-ही-साधते हैं, संसार का हित भी साधते हैं। उनकी इसी विशेषता के कारण ही लोग उनका सान्निध्य साधते हैं, उनके चरणों में पहुंचकर धन्यता की अनुभूति करते हैं, जीवन- क्षणों की सार्थकता मानते हैं । अणुव्रत : स्वस्थ समाज बनाने का कार्यक्रम श्री कर्णपुर में मैं जब से आया हूं, तब से लोगों के दिल में संतों का सान्निध्य साधने का उत्साह देख रहा हूं। प्रवचन में तो हजारों की संख्या में लोग उपस्थित हो ही रहे हैं, व्यक्तिशः संपर्क के लिए भी काफी लोग पहुंच रहे हैं। व्यक्तिगत संपर्क और सान्निध्य भी बहुत उपयोगी तत्त्व है। उससे अनेक प्रकार की समस्याओं का समाधान पाया जा सकता है। मैं अपने संपर्क में आनेवाले लोगों के समक्ष अणुव्रत की चर्चा करता हूं। अणुव्रत के छोटे-छोटे संकल्प सभी वर्गों से संबद्ध हैं। वे व्याप्त बुराइयों पर तीव्र प्रहार करते हैं। इस प्रहार के द्वारा व्यक्ति-व्यक्ति का जीवन बुराइयों से मुक्त बनता है। इस कार्य को मैं बहुत मूल्य देता हूं। समाज को स्वस्थ बनाने का यह कार्यक्रम जितनी तीव्र गति से आगे बढ़ता है, उतना ही सबका हित है। विकास या ह्रास आज मेरे सामने किसान और सरपंच - दो वर्गों के लोग हैं। कहा जाता है कि पंचों में परमेश्वर रहता है। तब तो शायद सरपंचों में परम परमेश्वर रहता होगा। किसानों के बारे में ऐसा माना जाता है कि वे सरलमना होते हैं, छल-कपट नहीं जानते, किसी को धोखा नहीं देते, पर मुझे लग रहा कि आज इन दोनों ही वर्गों की यह प्रतिष्ठा नहीं रही है। न पंचों में कथित परमेश्वर रहा है और न किसान ही सरलमना रहे हैं। भले लोग आज के युग को विकास का युग कहते हैं, पर मेरी दृष्टि में तो सर्वत्र विकास से ह्रास की ओर गति है, जो कभी काम्य नहीं हो सकती । पृष्ठभूमि नहीं बनी भारतवर्ष में पंचायत व्यवस्था लागू की गई। इसका उद्देश्य रहा था - सत्ता का विकेंद्रीकरण । ग्राम की व्यवस्था / अनुशासन ग्राम के ही किसी योग्य व्यक्ति के माध्यम से हो। इसके पीछे जनतंत्र को व्यापक बनाने का चिंतन था, लेकिन इस कार्य में एक भूल हो गई । व्यवस्था आगे की सुधि इ • २१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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