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२९ : कैसे मनाएं महावीर को*
जन्म-जयंती मनाने की सार्थकता
आज महावीर का पावन जन्मदिन है। महावीर इस धरती के एक दिव्य महापुरुष थे। महापुरुषों का जन्मदिन मनाने की परंपरा चली आ रही है। इस निमित्त उनकी स्मृतियां ताजा हो जाती हैं। नई पीढ़ी को संस्कार मिलते हैं। उसे इतिहास की बहुत-सी घटनाएं जानने-समझने का अवसर प्राप्त होता है। परंतु जयंती मनाने की पूरी सार्थकता तब है, जब जनता उनके विचार हृदयंगम करे, उनके अनुरूप अपना जीवन ढाले। प्रत्येक व्यक्ति प्रतिवर्ष उनके अमूल्य शिक्षा-रत्नों में से अधिक नहीं तो कम-से-कम एक शिक्षा-रत्न तो अवश्य स्वीकार करे और अपना जीवन सत्प्रवृत्त बनाए, अन्यथा लाभ अल्प और औपचारिकता ज्यादा रह जाएगी। महावीर का जन्म और आर्यक्षेत्र
आज से ढाई हजार से कुछ अधिक वर्ष पहले भगवान महावीर इस संसार में आए। आए भी इस आर्यक्षेत्र में नहीं, किन्तु तथाकथित अनार्यक्षेत्र में। आज जिस बंगाल और बिहार की भूमि में जाना अकल्प्य माना जाता है, वहां भगवान महावीर का जन्म हुआ था। शास्त्रों में जहां
आर्य-अनार्य का विश्लेषण है, वहां बताया गया है कि जिस क्षेत्र में त्रिषष्टिशलाकापुरुषों का जन्म होता है, वह क्षेत्र आर्य है। चौबीस तीर्थंकर भी इन्हीं महापुरुषों में हैं। ऐसी स्थिति में बंगाल और बिहार को अनार्यक्षेत्र कहने का क्या औचित्य रह जाता है ?
विशाल राजवंश में लालन-पालन होने पर भी भौतिक वैभव महावीर को लुभा नहीं सका। लुभाता भी कैसे? संसार का यह वैभव तुच्छ व्यक्तियों को ही लुभा सकता है। महान व्यक्ति की दृष्टि में शान की चीज *महावीर जयंती पर प्रदत प्रवचन कैसे मनाएं महवीर को
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