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२८ : सत्संग का महत्त्व
जीवन को बनाने और बिगाड़ने में संगति का बड़ा प्रभाव होता है। बुरी संगति से व्यक्ति पतित हो जाता है और सत्संग से नरक भी स्वर्ग में परिणत हो जाता है। श्रीगंगानगर जिले की स्थिति का अध्ययन करने से ऐसा लगता है कि इस क्षेत्र को अधिक समय देना आवश्यक है, क्योंकि यह क्षेत्र अध्यात्म की दृष्टि से बंजर है, भले भौतिक दृष्टि से बहुत उर्वर है। हां, एक शुभ लक्षण है कि लोगों का अध्यात्म के प्रति आकर्षण है। यह क्षेत्र सत्संग चाहता है। इसका प्रमाण है-प्रतिदिन की उपस्थिति। अपने व्यस्त जीवन में भी लोग संतों को सुनने के लिए समुत्सुक रहते हैं।
जब मैं शहर के घरों में गया तो मुसद्दीलालजी का घर आ गया। उन्होंने अपनी कहानी सुनाते हुए कहा-'आचार्यजी ! मैंने जब से समझ पकड़ी, तब से नशा करना शुरू कर दिया था। फिर मैं अकेला ही नशा नहीं करता था, अपितु सैकड़ों व्यक्ति सामूहिक रूप से नशा करते थे। यहां के जैनों ने हमें नशा छोड़ने के लिए प्रेरित किया। हमने नशे की बुराई समझी, पर वह छूटी नहीं। २७ मार्च से मुझे आपका सत्संग मिला और मेरा मन बिलकुल बदल गया। अब मैंने जिंदगी-भर के लिए नशा न करने का संकल्प कर लिया है।' __मैं उनके घर से प्रस्थित हुआ तो कुछ भाई मेरे साथ हो गए। वे बोले-'आचार्यजी! इनकी शराब क्या छूटी है, शराब का अड्डा उठ गया है। इनके कारण अड़ोस-पड़ोस की बड़ी दुर्गति हो रही थी। हमने कितनी ही बार इनके पैरों में पगड़ी रख दी, फिर भी ये शराब छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। आपने हमारी सारी मुसीबतें मिटा दी हैं। हमारे मुहल्ले को स्वर्ग बना दिया है।'
मैंने पाया, बहुत-से व्यक्ति व्यसनी होकर नारकीय जीवन जी रहे हैं। उनका सुधार ही वास्तविक सुधार है। यदि यह न होता तो संतों की सत्संग का महत्त्व
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