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काम करना पड़ता है, यह मजबूरी है, पर उसमें आसक्ति न हो तो बहुत ऊंची साधना हो सकती है।
मुनि के जीवन में आर्जव, मार्दव, क्षांति और मुक्ति को साक्षात पाकर इंद्र उनके चरणों में नत हो गया। इन गुणों के कारण ही वे जन-जन की आस्था के केंद्र बनते हैं। जाति, लिंग और वर्ग के भेदों से अतीत यह धर्म का स्वरूप है। इसका विकास सबके लिए आवश्यक है।
श्रीगंगानगर १ अप्रैल १९६६
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