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________________ एक जमींदार के घर गया। वहां एक औरत के पैरों में चांदी के मोटे-मोटे कड़े थे। मैंने जमींदार से पूछ लिया-'इन कड़ों का वजन कितना होगा?' जमींदार बोला-'महाराज ! एक कड़ा सेर से ज्यादा का नहीं है।' मैंने पूछा-'पैरों को वजन नहीं लगता है क्या?' इस बार वह औरत बोली'महाराज! वजन तो लगता ही है।' सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ। उसी भावधारा में मैंने पूछा-'फिर क्यों रखती हो?' बहिन बोली-रखू कैसे नहीं ? जो एक परंपरा पड़ी हुई है, उसका निर्वाह भी जरूरी है।' आभूषण भार हैं __मैं मानता हूं कि गहने बंधन हैं। शास्त्रों में कहा गया है-सव्वे आभरणा भारा। अर्थात सब आभूषण भार हैं, पर जिसे वे भार न लगें, वह उन्हें कैसे छोड़े? हालांकि आभूषण के प्रचलन के पीछे एक उद्देश्य रहा है। शुरू-शुरू में पुरुष शादी करके स्त्री को घर लाया। उस समय उसका अपनी माता के प्रति आकर्षण होना सहज है। इसलिए वह भाग न जाए, इस भय/आशंका से उसका समूचा शरीर उसने आभूषणों से जकड़ दिया। धीरे-धीरे यह आम परंपरा हो गई। नारी का आभूषणों के साथ मानो अभिन्न संबंध हो गया। यद्यपि आजकल भारी आभूषणों के प्रति महिलाओं का आकर्षण घट रहा है, तथापि हीरे और मोती के आभूषणों के प्रति आकर्षण में कमी दिखाई नहीं देती। यह आकर्षण उनके अधिकाधिक संग्रह की प्रेरणा बनता है। संग्रह चाहे सोने-चांदी के आभूषणों का हो या हीरे और मोती के आभूषणों का, धार्मिक दृष्टि से अच्छा नहीं कहा जा सकता। अधिक संग्रह तो सामाजिक दृष्टि से भी अच्छा नहीं है। फिर उनका अधिक उपयोग एवं प्रदर्शन करना तो खतरे से भी खाली नहीं है। यह बात मैंने प्रासंगिक तौर पर कही। हमारा मूल प्रसंग है सिद्धांतश्रवण का। कई व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो इस आशंका से सुनना ही नहीं चाहते कि इससे किसी की बात दिमाग में जंच जाएगी। मैं मानता हूं कि किसी को सुनने में यह चिंता नहीं होनी चाहिए। यदि उसकी बात अनुचित लगे तो उसे स्वीकार न किया जाए, पर दिमाग में बैठ जाने के भय से किसी को न सुनना कहां की बुद्धिमत्ता है ? श्रद्धा दुर्लभ है कुछ-कुछ सुननेवाले व्यक्ति फिर भी मिल सकते हैं, पर श्रद्धा करनेवाले बहुत कम होते हैं। श्रद्धा का अर्थ है-जो अच्छी बात सुनी जाए, श्रद्धा और आचार की समन्विति -- १५५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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