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________________ चिनगारियां एक बोतल पर जा पड़ीं। इससे वह बोतल फूट गई। उसके फूटने के साथ ही सैकड़ों बोतलों के फूटने की आवाज आने लगी । ड्राइवर डरा और धूल से बचाव करने लगा, लेकिन आग काबू में नहीं आई। संयोगवश नहर पास ही थी । ड्राइवर ने नहर तोड़कर ट्रक को पानी में ढकेल दिया और जैसे-तैसे बचाव किया। सुबह हम उधर से गुजरे। हमने देखा कि नहर का पानी गंदा हो गया है। उसका रंग बदल गया है। दूर-दूर तक उसकी भयंकर बदबू फैल गई है। उसे सहना मुश्किल हो गया । मन में विचार आया कि आश्चर्य है, ऐसी शराब भी लोग पीते हैं ! कोई किसी को कुछ कहनेवाला नहीं है । उस समय मुझे कुएं में भांग पड़ी - यह कहावत याद आ गई। हर व्यक्ति पर शराब का नशा छाया हुआ है। ऐसी स्थिति में कौन कहे; किसे कहे, क्या कहे ? बंधुओ ! मदिरा पीना एक भयंकर बुराई है। इसलिए इससे स्वयं बचें और अपने बच्चों को बचाएं। गांधीजी जब विदेश गए, तब उनकी मां पुतलीबाई ने उन्हें मद्यपान, मांस भक्षण और परस्त्री गमन-इन तीनों बुराइयों से सर्वथा बचने के संकल्प करवाए थे। गांधीजी ने संकल्प दृढतापूर्वक निभाकर आदर्श उपस्थित कर दिया। हमारे वर्तमान के होनहार विद्यार्थी भी दृढसंकल्प करें और युग की इस बुराई को परास्त करके राष्ट्र के आदर्श नागरिक बनें। सरकार कानून के द्वारा अपने ढंग से काम कर रही है। कानून भय पैदा करता है और उससे अस्थायी काम होता है। इसका भी अपना एक उपयोग है, पर बुराई मिटाने का सही तरीका है - हृदय परिवर्तन या विचार- परिवर्तन | विचार बदलने के बाद कानून स्वयं कृतार्थ हो जाता है। अणुव्रत हृदय परिवर्तन के द्वारा जन-जन को इस बुराई से छुड़ाने का प्रयत्न करता है। इन पंद्रह-बीस वर्षों की अवधि में इस आंदोलन से प्रेरित होकर हजारों-हजारों लोगों ने इस बुराई से मुक्ति पाई है। आप भी इस बुराई के दुष्परिणाम समझकर " इसे छोड़ने के लिए संकल्पबद्ध हों। यह संकल्पबद्धता निश्चय ही आपके जीवन में नया सूर्योदय लाएगी। आपमें से बहुत-से - व्यक्ति ऐसे भी होंगे, जो इस बुराई से बचे हुए हों। वे भी भविष्य की सुरक्षा की दृष्टि से संकल्प ग्रहण करें। साथ ही प्रत्येक व्यक्ति यह संकल्प भी करे कि मैं वर्षभर में इतने व्यक्तियों की शराब छुड़ाऊंगा । यह प्रतिज्ञा बहुत मूल्यवान है। आगे की सुधि लेइ • १५२ • Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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