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________________ दूर हो जाती है तो राष्ट्र के विकास को नया आधार मिलता है। जनता में सौहार्द, भाईचारा और मैत्री का वातावरण बनता है, जो कि किसी राष्ट्र के विकास का मौलिक आधार है। स्वागत अध्यात्म का __ आगमन के अवसर पर आपने हम साधु-संतों का स्वागत किया, यह भारतीय संस्कृति की गरिमा के अनुरूप ही है। भारतीय संस्कृति त्यागप्रधान संस्कृति है, अध्यात्मप्रधान संस्कृति है। साधु-संत त्याग के प्रतीक होते हैं, अध्यात्म के मूर्त रूप होते हैं। इसलिए साधु-संतों का स्वागत त्याग का स्वागत है, अध्यात्म का स्वागत है, भारतीय संस्कृति का स्वागत है। इसी आधार पर मैं आपका यह स्वागत स्वीकार कर रहा हूं। यदि यह स्वागत मेरा व्यक्तिगत होता तो मुझे स्वीकार्य नहीं था। अस्तु, आपने अपना कर्तव्य निभाया, पर इस संदर्भ में मैं एक बात कहना चाहता हूं। हालांकि शाब्दिक स्वागत भी बिना हृदय की भावना के नहीं हो सकता, इसलिए उसकी भी अपनी सार्थकता है, तथापि संतों का सच्चा स्वागत तभी हो सकेगा, जब आप भी उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में यथाशक्य त्याग को स्वीकार करेंगे, धर्म को व्यवहारगत बनाएंगे। अणुव्रत की चर्चा मैंने पूर्व में की थी। यह आपके लिए राजपथ है। आप इस राजपथ पर आएं। भर्तृहरि ने कहा है • को लाभः ? गुणिसंगमः...... • का हानिः ? समयच्युतिः - गुणी व्यक्तियों का संपर्क लाभ है और समय को बरबाद करना हानि है। अतः हर व्यक्ति समय का उपयोग करके सत्संग का लाभ उठाए, यह अपेक्षित है। निस्संदेह आपके जीवन में त्याग के फूल खिलेंगे, धर्म की सुरभि फूटेगी। श्रीगंगानगर २७ मार्च १९६६ .१३८ - आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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