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________________ मानव-मानव के चैतन्य को विकसित होने का अवसर मिलता है। धर्म और संप्रदाय धर्म के क्षेत्र में एक बहुत बुरी बात यह हुई है कि लोगों ने धर्म को गौण करके धर्म-संप्रदायों को प्रमुखता दे दी, जबकि धर्म मुख्य है और संप्रदाय गौण। गहराई से देखा जाए तो संप्रदायों का अस्तित्व धर्म के अस्तित्व के साथ ही जुड़ा है। यानी धर्म है तो संप्रदाय हैं, अन्यथा उनका कोई अस्तित्व नहीं है। धर्म शाश्वत तत्त्व है, कालिक सत्य है। हालांकि धर्म के प्रचार-प्रसार और उसकी सुरक्षा की दृष्टि से संप्रदायों का अपना एक उपयोग है, तथापि धर्म का अस्तित्व उनके अस्तित्व पर निर्भर नहीं है। आज तक संसार में न जाने कितने-कितने संप्रदाय उदय में आकर अस्तित्वहीन हो गए, उनका लेखा-जोखा किया जाना भी असंभव है, परंतु धर्म सलामत है। भविष्य में भी वह सदा बना रहेगा। लेकिन किसी संप्रदाय की शाश्वतता के बारे में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। मुझसे कोई मेरा परिचय पूछता है तो मेरा पहला उत्तर होता है कि मैं एक मानव हूं। उसके बाद का उत्तर होता है कि मैं एक धार्मिक हूं। इस क्रम में तीसरा परिचय एक जैनाचार्य का और अंतिम परिचय तेरापंथ संप्रदाय के आचार्य का होता है। यह धर्म को प्रमुख और संप्रदाय को गौण मानने का ही परिणाम है। मैं चाहता हूं, इस दृष्टि का व्यापक विकास हो, ताकि धर्म को अपनी मूल प्रतिष्ठा मिल सके। धर्म जब अपनी मूल प्रतिष्ठा पर होगा तो अलगअलग संप्रदाय हमारे लिए कोई कठिनाई या परस्पर संघर्ष का कारण नहीं बनेंगे। आप निश्चित मानें, जब तक यह स्थिति नहीं बनती, तब तक वैचारिक भेद, उपासना-पद्धति के भेद आदि छोटी-छोटी बातों के कारण संप्रदाय-संप्रदाय में परस्पर होनेवाला संघर्ष नहीं टाला जा सकता। बड़े दुर्भाग्य की बात तो यह है कि संघर्ष संप्रदायों के बीच होता है और बदनाम धर्म होता है, जबकि धर्म तो परस्पर मैत्री का नाम है, सौहार्द का संदेशवाहक है। अपेक्षा है, धर्म को इस बदनामी से बचाया जाए। बंधुओ! यह मुख्य और गौण की बात राष्ट्रीय संदर्भ में भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। आज भाषा, जाति, प्रांत आदि के नाम पर जितने विवाद हो रहे हैं, उसका मूलभूत कारण यही तो है कि लोगों ने गौण को मुख्य मान लिया है और मुख्य को गौण | राष्ट्र के समक्ष भाषा, जाति, प्रांत आदि गौण हैं, पर लोगों ने राष्ट्र को गौण कर दिया है और भाषा आदि को मुख्य। राष्ट्र के विकास में यह एक बड़ी बाधा है। यदि यह बाधा जनतंत्र और धर्म १३७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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