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________________ १८ : जीवन की सफलता के दो आधार सिरसा से हम चले और भटिंडा पहुंच गए। भटिंडा में हमारा यह प्रथम- प्रथम आगमन है । हमारे धर्मसंघ की दो शताब्दियां संपन्न हो गईं, पर धर्मसंघ के किसी आचार्य का यहां पदार्पण नहीं हुआ। कुछ वर्षों पूर्व हम सिरसा तक आए थे, पर भटिंडा नहीं आए। इस बार हमने सलक्ष्य यहां आने का निश्चय किया और मुझे प्रसन्नता है कि आज वह निश्चय क्रियान्वित हो गया है। आप लोग जानते हैं कि जैन मुनि पदयात्री होते हैं। पदयात्रा उनका जीवन-व्रत होता है। उनकी व्रज्या का उद्देश्य होता है-स्वयं की अध्यात्मसाधना करना । साथ ही साथ जन साधारण को भी इस दिशा में मोड़ना उनका लक्ष्य होता है। यही उभयपक्षीय उद्देश्य लेकर हम गांव-गांव और शहर - शहर में परिभ्रमण करते हैं। इसी क्रम में आज हम आपके भटिंडा पहुंचे हैं। कर्तव्य निष्ठा का मूल्य आप लोग पूछ सकते हैं कि आपके इस प्रयत्न से कितने लोग अध्यात्म की दिशा में प्रेरित हुए। बंधुओ ! इस कितने की गणित में मेरा विश्वास नहीं है। मैं अपनी दृष्टि से कार्य करता हूं और इसी में मेरा विश्वास है। अलबत्ता यह जरूर मानता हूं कि जो व्यक्ति कर्तव्यनिष्ठा के साथ कार्य करता है, वह निश्चित रूप में लाभान्वित होता है। जहां सफलता और श्रम व्यय की भाषा में सोचा जाता है, वहां प्रायः निराशा ही व्यक्ति के हाथ लगती है। आज राष्ट्र की जनता में कर्तव्य निष्ठा की भावना घट रही है। उसके परिणाम हमारे सामने प्रत्यक्ष हैं। राष्ट्र की जो उज्ज्वल छवि प्राचीन काल में थी, वह धूमल हुई है, हो रही है। मुझे ऐसा कहने में कोई कठिनाई नहीं है कि जब तक जनता में कर्तव्य निष्ठा नहीं बढ़ती है, तब जीवन की सफलता के दो आधार १११ • Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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