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ध्यान से समझने का प्रयत्न करे, ताकि वह इस हिंसा से बच सके।
कुछ लोगों में जैन-धर्म के अहिंसा के सिद्धांत के प्रति एक बहुत बड़ी भ्रांति है। वे कहते हैं, चूंकि जैन- सिद्धांत सार्वजनिक कार्यों में पाप बताता है, इसलिए जैन लोग इनमें भाग नहीं लेते, सहयोग नहीं देते। मैं मानता हूं, यह जैन-धर्म पर एक प्रकार का गलत आरोप है। यह ठीक है कि जैनधर्म अस्पताल, स्कूल, कुआं आदि के निर्माण को आत्मधर्म नहीं मानता, पर साथ ही गृहस्थ को इनके निर्माण के लिए खुला निषेध भी नहीं करता । इन सब प्रवृत्तियों को वह लोक-धर्म या कर्तव्य के रूप में स्वीकार करता है । सामाजिक दायित्वों से बंधा कोई व्यक्ति इनसे कैसे बच सकता है ? जैन धर्म का निषेध इन्हें आत्म-धर्म मानकर करने के लिए है। अतः मात्र उन लोगों के लिए ये प्रवृत्तियां अकरणीय की सीमा में आती हैं, जो शुद्ध अध्यात्म की भूमिका में जीवन जीते हैं। जो लोग पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय दायित्वों से बंधे हुए हैं, उनके लिए यह सीमा नहीं है। वास्तविकता यह है कि कुछ कंजूसवृत्ति के लोग धन का ममत्व छोड़ नहीं पाते और बदनाम सिद्धांत को करते हैं । जैन धर्म संग्रह को पाप कहता है, असंग्रह का उपदेश देता है, पर कंजूस व्यक्तियों को संग्रह के समय यह पाप की बात न जाने क्यों याद नहीं आती । यदि सचमुच ही उन्हें पाप का भय है तो वे संग्रह कैसे करेंगे ? मैं नहीं समझता कि जब संग्रह के समय पाप की बात उनके ध्यान में नहीं आती, तब सार्वजनिक कार्यों के लिए धन देने के समय उसे बीच में क्यों लाया जाता है। वस्तुतः यह पाप का भय नहीं, बल्कि सिद्धांत की ओट में अपनी कंजूसवृत्ति की सुरक्षा की कोशिश है; उस पर औचित्य की मोहर लगाने का प्रयत्न है। मैं कहना चाहता हूं, यदि सचमुच ही उन्हें पाप का भय है तो वे संग्रह न करें। फिर कोई उनसे क्यों कर मांगेगा ? लेकिन उनका संग्रह तो चलता रहता है। जब उस समय धर्म उन्हें रोक नहीं पाता तो व्यय के समय कैसे रोकेगा ? मैं फिर कहना चाहता हूं कि धन के उचित व्यय के समय यदि कोई धर्म को बाधक तत्त्व के रूप में बीच में लाता है तो वह बहानेबाजी है, वृत्ति की अनुदारता है और धर्म को बदनाम करनेवाली हरकत है। वस्तुतः अनुदार व्यक्ति की मानसिकता ही कुछ ऐसी हो जाती है कि धन उसके लिए प्राणों से भी ज्यादा प्यारा हो जाता है।
एक व्यक्ति एक रुपया लेकर सौदा लेने के लिए बाजार गया। सौदा खरीदकर जब पैसे देने के लिए उसने मुट्ठी खोली तो देखा, रुपया पसीने
जैनधर्म और अहिंसा
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