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________________ वैचारिक और मानसिक हिंसा मैं मानता हूं, कायिक हिंसा से सर्वथा बचना किसी भी गृहस्थ के लिए असंभव है। गृहस्थी के पचासों ऐसे कार्य हैं, जिन्हें करना भी आवश्यक है और उनमें हिंसा भी प्रत्यक्ष है, पर वाचिक और मानसिक हिंसा से बहुत सहजता से बचा जा सकता है। वाचिक हिंसा का तात्पर्य तो आप समझते ही हैं। अपनी जबान से किसी को कटु शब्द कहना, गाली देना आदि इसके अंतर्गत हैं। इस हिंसा से व्यक्ति कई बार इतना बड़ा नुकसान उठा लेता है, जितना कायिक हिंसा से भी नहीं होता । मानसिक हिंसा बहुत सूक्ष्म है, इसलिए इसे समझने में कठिनाई होती है, पर इसे समझना बहुत आवश्यक है । इसका क्षेत्र बहुत व्यापक है। वकील लोग वकालत करते हैं। वकालत में वे अपनी सलाह बेचते हैं। जहां थोड़ा पैसा अधिक मिलता है, वहीं अपने विचार घुमा देते हैं, सत्य को सूली पर चढ़ा देते हैं। इसी लिए कहा जाता है कि विचारों की भी वेश्यावृत्ति होती है। इसी प्रकार अपने प्रतिद्वंद्वी को हराने या नीचा दिखाने के बारे में सोचना भी मानसिक हिंसा है। विरोधी विचारों से समझौता करने में असमर्थ होकर व्यक्ति की हत्या कर देना बहुत ही जघन्यता की बात है। महात्मा गांधी और अमरीकी राष्ट्रपति केनेडी की हत्या का कारण कोई व्यक्तिगत लड़ाई नहीं था । विचारों के युद्ध में हारकर ही शायद यह अनुपादेय तरीका काम में लिया गया था । इसी क्रम में दूसरों के विचार रौंदना या उन पर अपने विचार थोपना भी वैचारिक हिंसा है। तेरापंथ के आद्यप्रवर्तक आचार्य भिक्षु ने इस सिद्धांत को बहुत बारीकी से व्याख्यायित किया है। आप मांस नहीं खाते। उसे बहुत गलत समझते हैं। दूसरा एक व्यक्ति मांसाहारी है। इस स्थिति में आप उसे समझाने का प्रयास करते हैं, उसके मन में इस प्रवृत्ति के प्रति ग्लानि पैदा करके उसे छुड़ा देते हैं, निस्संदेह यह स्वस्थ तरीका है । पर आप उस पर जबरन अपने विचार थोपें, यह उचित नहीं है। यह प्रवृत्ति वैचारिक हिंसा की कोटि में आती है। इसी प्रकार मांसाहारी व्यक्ति से घृणा करना भी वैचारिक हिंसा है। जैसाकि मैंने कहा, वैचारिक हिंसा का क्षेत्र बहुत विस्तीर्ण है। इस संदर्भ में कुछ बातें मैंने आज कही हैं। फिर कभी प्रसंग उपस्थित हुआ तो और भी बातें बताई जा सकती हैं । हर भाई-बहिन को चाहिए कि वह इन्हें आगे की सुधि ले • १०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003107
Book TitleAage ki Sudhi Lei
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size13 MB
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