________________
पुरुषार्थ : विकास का आधार ___ मैं मानता हूं, पुरुषार्थ वह तत्त्व है, जो न केवल अध्यात्म के क्षेत्र में, अपितु जीवन के हर क्षेत्र में विकास का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आधार है। संसार में जो लोग सफलता की ऊंचाइयां छू पाए हैं, उनकी कहानी वस्तुतः पुरुषार्थ की ही कहानी है, पर मैं देखता हूं कि आज का मानव यह पुरुषार्थ का तत्त्व भूलकर यंत्रों का दास बन रहा है, पंगु बन रहा है। पहले लोग दस-पंद्रह मील पैदल चल लेते थे। पर आजकल तो लोग दो मील दूरी तय करने के लिए दो घंटे बस की प्रतीक्षा कर लेते हैं। कुएं की मोटर खराब हो गई तो प्यास से अकुलाते रहते हैं, पर कुएं से पानी खींचकर निकालने का श्रम नहीं करते। यह श्रमपराङ्मुखता जीवन के लिए अभिशाप साबित हो रही है। इसके कारण राष्ट्र के विकास में बहुत बड़ी बाधा पैदा हो रही है। भारत गरीब नहीं है!
पिछले दिनों मैं डाबड़ी में था। सर्वोदयी नेता श्री जयप्रकाशनारायण वहां आए। किसानों की एक विशाल सभा को उन्होंने संबोधित किया। अपने वक्तव्य के अंतर्गत उन्होंने कहा-'हम लोग विदेशी लोगों को गांवों में ले जाते हैं। एक बार ऐसा ही प्रसंग था। कुछ विदेशी लोगों ने मेरे साथ ग्रामों की यात्रा की। गांवों को देखने के बाद वे बोले-हमने तो सुना था कि भारतवर्ष में गरीबी है, पर यह बात गलत है। हम अपनी इस धारणा में संशोधन कर रहे हैं कि भारतवर्ष में अर्थाभाव है। मैंने पूछा-आपके ऐसा कहने का आधार क्या है? उन्होंने कहा-जिस देश के लोग गरीब हों, वे क्या कभी हाथ पर हाथ धरकर बैठ सकते हैं? हम देख रहे हैं, यहां सैकड़ों-सैकड़ों लोग काम के समय बैठकर बातें बनाते हैं। मैंने कहा-यहां काम की कमी है। बहुत-से मजदूरों को कोई काम नहीं मिलता, इसलिए वे निकम्मे रहते हैं। उन्होंने मेरी बात का प्रतिवाद करते हुए कहा-नहीं, यह बात सही नहीं है। हम देख रहे हैं कि खेतों की जमीन ऊबड़-खाबड़ पड़ी है, पानी के नल टूटे पड़े हैं, जगह-जगह गंदगी के ढेर लगे हुए हैं।..... फिर हम कैसे मान लें कि लोगों को काम नहीं मिलता? हमारे देश में तो कोई श्रमिक निकम्मा नहीं रहता। वस्तुतः खाने-पीने और सोने का समय छोड़कर शेष समय में सतत परिश्रम करनेवालों का देश ही समृद्ध बन सकता है, निकम्मे बैठनेवालों का नहीं। काम के समय भी
- आगे की सुधि लेइ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org