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काज
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व्याधि चिकित्सा-(a) १. सुप्त कायोत्सर्ग करें।
२. सुप्त कायोत्सर्ग की मुद्रा में 'अह' का जप एक मिनिट में ८० या ६० बार करें।
३. तीन मिनिट के बाद जप के उच्चारण में अन्तराल बढ़ाते जाए और जप की संख्या को घटाते-घटाते एक मिनिट में दस या पांच तक ले जाएं। अंतराल-काल में निर्विचार रहें।
इस स्थिति में स्वसम्मोहन होता है। अब जिस शारीरिक और मानसिक व्याधि की चिकित्सा करनी हो, उसके प्रतिपक्ष की आकृति का निर्माण करें। जैसे मेरा घुटना स्वस्थ हैं।
एकाग्र मन से उस आकृति को स्थिर कर उसे भूल जाएं, स्वसम्मोहन की स्थिति में रहें।
एक सप्ताह के प्रयोग के बाद स्वस्थता की अनुभूति होगी।
२६ नवम्बर
२०००
(भीतर की ओर
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