________________
-
-
ज
-
अक्रिया का मूल्य ध्यान शरीर, वाणी और मन की प्रवृत्ति को कम करने वाला प्रयोग है, अक्रिया का प्रयोग है। जेठा भाई ने एक बार मुझे कहा ‘पढ़ता हूं, लिखता हूं। यह मेरी क्रियाशीलता है। ध्यान में बैठू तो निकम्मा हो जाऊंगा।' यह चिन्तन उस भूमिका का है जिस अवस्था में अक्रिया का मूल्य नहीं आंका जाता।
सत्य का साक्षात्कार वही व्यक्ति कर सकता है जो अक्रिया का मूल्य जानता है। क्रिया सामाजिक अथवा व्यावहारिक उपयोगिता है। वह इन्द्रियातीत चेतना के विकास में एक बाधा है। अकर्म-वीर्य की साधना करने वाला ही अतीन्द्रियज्ञानी हो सकता है।
२० सितम्बर
२०००
-
JA
(भीतर की ओर)
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org