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ऋतुंचक्र ध्यान की साधना करने वाले को समय तथा समय में होने वाले प्रभावों का बोध होना जरूरी है।
वर्ष में दो अयन होते हैं
१. दक्षिणायण-तीन भतुओं का चक्र। (वर्षा, शरद, हेमन्त)
२. उत्तरायण तीन भतुओं का चक्र। (शिशिर, बसन्त, ग्रीष्म)
दक्षिणायण की तीन ऋतुओं में चन्द्रमा बलवान होता है। इस समय खट्टे, नमकीन और मीठे रस क्रमशः बलवान होते हैं। उत्तरोत्तर उनका बल बढ़ता है।
उत्तरायण की तीन ऋतुओं में सूर्य बलवान होता है। इस समय कड़वा, कषैला और कर्कश रस क्रमशः बलवान होता है। उत्तरोत्तर उनका बल घटता है।
साधक के लिए इस ऋतुचक्र का उपयोग बहुत जरूरी है।
०८ सितम्बर
२०००
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____भीतर की ओर
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