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भाग्य और पवित्रता पुरुषार्थ और भाग्य एक विवाद का विषय है। पुरुषार्थ बड़ा या भाग्य ? इसकी चर्चा प्राचीन साहित्य के पृष्ठों में अंकित है।
इसका बहुत सरल समाधान है-अतीत का पुरुषार्थ वर्तमान का भाग्य और वर्तमान का पुरुषार्थ भविष्य का भाग्य।
तुम्हारा भाग्य वही है जो तुमने अपने सूक्ष्म शरीर या मन पर अंकित किया है।
पूर्व कर्म या पूर्व विचार व्यक्त होते हैं, वही भाग्य है।
पविन विचारों की सृष्टि अच्छे भाग्य की सृष्टि और अपविभ विचारों की सृष्टि बुरे भाग्य की सृष्टि है। इसलिए विचारों की पविनता जरूरी है।
Marwwamrewarror
२६ अगस्त
२०००
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____(भीतर ओर
भीतर की ओर
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