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आचार्य कुमारदेव ने भी रूपकोशा के नृत्य के कार्यक्रम को निश्चित रूप दे दिया था ।
कल शरद् पूर्णिमा है।
कल ही कोशा भारतवर्ष के सम्राट् की कलालक्ष्मी बनेगी। कल ही कोशा अपने हृदय में संजोए हुए प्रणय- स्वप्न को सिद्ध करेगी और कल ही चाणक्य अपने मित्र के जीवन का हृदय परिवर्तन करेगा ।
क्या यह सब संभव है ?
हार और विजय का आधार भाग्य है या पुरुषार्थ ?
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आर्य स्थूलभद्र और कोशा
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